१२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
ज्ञानीने चारित्रमोहनो उदय आवीने पीडा करे छे. आनो अर्थ शुं? एनो अर्थ ए के ज्ञानीने चारित्रनी अस्थिरतानो राग उत्पन्न थाय छे ते वडे तेने पीडा छे. चारित्रमोह तो जड छे, ते शुं पीडा करे? परंतु पोताने जे अस्थिरतानो राग छे ते पीडा करे छे एम अर्थ छे.
तो कर्मनो उदय आवीने पीडा करे छे एम चोख्खुं लख्युं छे ने? हा, पण भाई! ए तो निमित्त-परक भाषा छे. कर्मना उदयना लक्षे ज्ञानीने जे राग थाय छे ते राग पीडा करे छे तो चारित्रमोहनो उदय आवीने पीडा करे छे एम निमित्तनी मुख्यताथी कथन कर्युं छे. कर्मनो उदय अने जीवने थता विकारना-पीडाना परिणाम-ए बन्नेने निमित्त-नैमित्तिक संबंध छे पण कर्ताकर्म-संबंध नथी; समजाणुं कांई? कर्मनो उदय कर्ता थईने जीवने राग-पीडा करे छे एम नथी, पण निमित्तना लक्षे थयेला रागने कर्मना उदयथी थयो छे एम कहेवामां आवे छे.
आवो अर्थ करवामां शब्दोनो अर्थ बदलाई जतो नथी शुं? भाई! शब्दोनो अर्थ आ ज रीते यथार्थ थाय छे. ज्यां होय त्यां अज्ञानी कर्मथी राग थाय, कर्मथी राग थाय एम माने छे; शास्त्रमांथी पण एवां व्यवहारनयनां कथनो बतावे छे. परंतु भाई! कई अपेक्षाए वात छे ते यथार्थ जाणवुं जोईए. जुओ, ४७ नय नथी कह्या? तेमां ईश्वरनय अने अनीश्वरनय आवे छे. ‘आत्मद्रव्य ईश्वरनये परतंत्रता भोगवनार छे.’ एनो अर्थ ए छे के निमित्तने आधीन थवानी पोतानी पर्यायनी योग्यता छे अने तेने लईने राग थाय छे पण निमित्तने लईने नहि. ज्ञानीने पण जे राग थाय छे ते राग, पोते निमित्तने आधीन थाय छे माटे थाय छे, परंतु ते राग निमित्तथी थाय छे वा निमित्त राग करावे छे एम नथी.
कहे छे-ज्ञानीने चारित्रमोहनो उदय पीडा करे छे अर्थात् तेने जे राग थाय छे ते वडे तेने पीडा छे, दुःख छे अने पोते बळहीन एटले पुरुषार्थहीन होवाथी रागजनित पीडा सही शकतो नथी. पोते बळहीन छे एटले के विशेष विशेष उग्र पुरुषार्थ करी शकतो नथी एटले रागमां जोडाई जाय छे अने ते रागनी पीडाने ते सही शकतो नथी. अहा! ज्ञानीने अंदर राग आवी जाय छे अने पुरुषार्थनी विशेषता नहि होवाथी तेनुं समाधान थतुं नथी अने तेथी तेनी पीडा सहन करी शकतो नथी. माटे जेम रोगी रोगनी पीडा सही शकतो नथी त्यारे तेनो औषधादि वडे ईलाज करे छे तेम ज्ञानी भोग- उपभोगसामग्री वडे विषयरूप ईलाज करे छे. जुओ, परद्रव्य वडे आत्मानो ईलाज थाय छे एम अहीं सिद्ध नथी करवुं, एम छे पण नहि. पण अहीं तो ज्ञानीने परवशपणे राग थाय छे, तेनी एने पीडा छे अने कमजोर होवाथी ते सही जती नथी त्यारे ते परद्रव्यना-भोगसामग्रीना संयोगमां जाय छे तेथी अहीं कह्युं