समयसार गाथा-१९३ ] [ १३ छे के ज्ञानी भोगोपभोगसामग्री वडे-स्त्रीनुं शरीर, धन, भोजन, मकान इत्यादि वडे- विषयरूप ईलाज करे छे.
ज्ञानीनी द्रष्टि तो शुद्ध चैतन्यस्वरूपमां ठरेली छे, तेने शुद्धनुं परिणमन पण छे; तोपण पोतानी बळहीनताने लीधे तेने राग थई आवे छे, अने ते रागनी पीडा सही न जाय त्यारे ते तेनो विषयरूप ईलाज करे छे. जुओ, क्षायिक समकिती होय, अरे ते ज भवे मोक्ष जनार तीर्थंकर ज्यारे गृहस्थदशामां होय त्यारे तेमने भोगोपभोगसंबंधी राग थाय छे अने तेनी पीडा सहन थती नथी त्यारे भोगोपभोग सामग्री वडे तेनो तेओ ईलाज पण करे छे.
प्रश्नः– परद्रव्यथी आत्माने कांई पण लाभ-हानि न थाय एम ज्ञानी माने अने वळी परद्रव्य वडे रागनो-पीडानो ईलाज करे ए ते वळी केवी वात?
समाधानः– जुओ द्रष्टांत; रोगी रोगनो ईलाज करे छे तेथी शुं ते रोगने भलो जाणे छे? (ना). वळी ते जे औषधि वडे ईलाज करे छे ते औषधिने भली माने छे? ना. जेम रोगी रोगने के तेना ईलाजरूप औषधिने भलां जाणतो के मानतो नथी तेम जेने अंतर्द्रष्टि-आत्मद्रष्टि थई छे एवो ज्ञानी चारित्रमोहना उदयने-के जे रोग छे तेने- अने तेना ईलाजरूप भोगोपभोग-सामग्रीने भलां जाणतो के मानतो नथी. ज्ञानीने रागनी के रागना बाह्य ईलाजनी होंश नथी. ज्ञानीने भोगोपभोगमां अने तेनी सामग्रीमां हरख के होंश नथी; परंतु निरुपाये अवशपणे ते एमां जोडाय छे.
‘सम्यग्ज्ञान दीपिका’मां पण आना जेवी भाषा-वात आवे छे. त्यां क्षुल्लक श्री धर्मदासजी एम कहेवा मागे छे के-कोई स्त्रीने माथे पति होय अने कदाचित् अवशे कोई भूल थई गई होय तो तेनो दोष बहार आवतो नथी; आ तो दाखलो छे. तेथी करीने भोगना परिणामथी पाप थतुं नथी एम त्यां कहेवुं नथी. आ द्रष्टांतनी जेम जेना माथे शुद्ध चैतन्यमूर्ति आनंदरसकंद परमात्मस्वरूप भगवान आत्मा स्वामीपणे विराजमान छे तेने कदाचित् अवशे रागादि आवी जाय तो तेनो दोष बहार आवतो नथी. गजब वात भाई!
अहीं गाथामां तो द्रष्टिनुं जोर आपीने एम कह्युं के-ज्ञानी भोगने भोगववा छतां तेने निर्जरा ज थाय छे. ज्ञानीने राग छे अने तेना ईलाजरूप भोगोपभोग छे छतां तेने निर्जरानो हेतु कह्यो छे. झीणी वात छे, प्रभु! तेथी करीने भोग करवा (भोगववा) इष्ट छे शुं एम छे? अरे, भोगोमां जेने इष्टपणानी बुद्धि छे ए तो मिथ्याद्रष्टि छे, अज्ञानी छे. अहीं तो जेनी द्रष्टि भोग पर नथी पण ज्ञानस्वभाव पर छे एवा समकितीने उपभोगना काळे मोहनो भाव (निर्वंश) झरी जाय छे एम