Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ वात छे. आकरी वात बापा! अज्ञानी दया पाळे तोपण तेने मिथ्यात्वनुं बंधन थाय छे केमके ते ‘हुं परनी दया पाळुं छुं’ एम माने छे, ज्यारे ज्ञानी भोगमां जोडाय छे छतां तेने ते भोग निर्जरानुं निमित्त थाय छे. बापा! द्रष्टिना फेरे बधो फेर छे. (आत्मद्रष्टिवंतनुं वीर्य भोगमां उल्लसित नथी ज्यारे मिथ्याद्रष्टिनुं वीर्य भोगमां ज रच्युं-पचेलुं छे.) आवी वात छे.

गाथामां पाठमां तो ‘उवभोगमिंदियेहिं जं कुणदि सम्मदिट्ठी’–एम छे ने? मतलब के सम्यग्द्रष्टि द्रव्येन्द्रियो वडे चेतन-अचेतन द्रव्योनो उपभोग करे छे एम कह्युं छे ने? परंतु भाई! परनो कर्ता तो आत्मा छे ज नहि. द्रव्येन्द्रियोने चलावी शके एवी कोई शक्ति आत्मामां नथी. इन्द्रियोनुं परिणमन ए तो जड परमाणुओनुं परिणमन छे, ए कांई आत्मानी क्रिया नथी अने आत्मा ते करी शके छे एम पण नथी. परंतु अज्ञानी ते जडनी क्रिया पोताने लईने थई छे एम माने छे. ज्यारे ज्ञानी जडनी क्रिया जडने लईने जडमां थई छे एम माने छे. जुओ, आ द्रष्टिनो फेर! अरे, ज्ञानी तो द्रव्येन्द्रियोनी क्रियाना काळे तेना निमित्तमात्रपणे तेने जे विकल्प-राग थयो तेनुं कर्तापणुं अने स्वामित्व पण स्वीकारतो नथी. बहु सूक्ष्म मार्ग, बापु! वीतराग मार्गनां रहस्यो समजवा बुद्धि सूक्ष्म-तेज करवी जोईशे.

भगवान! अज्ञानपणे अनंतकाळ तें दुःखमां गाळ्‌यो छे. हजारो स्त्रीओनो संग छोडीने नग्न दिगंबर साधु थयो अने आकरां ब्रह्मचर्यादि पाळ्‌यां. पण तेथी शुं? छहढालामां आवे छे ने के-

“मुनिव्रत धार अनंत बार ग्रीवक उपजायौ,
पै निज आतमज्ञान बिना सुख लेस न पायौ.”

मतलब के रागथी भिन्न आत्माना ज्ञान अने भान विना तने आनंदना अंशनुं पण वेदन आव्युं नहि. तेनो अर्थ ए थयो के पंचमहाव्रतना परिणाम तने लेश पण सुख आपी शकया नहि. कयांथी आपे? जे स्वयं रागरूप छे, दुःखरूप छे ते सुख कयांथी आपे? भाई! र८ मूलगुण पाळवा ते राग छे अने ते राग होवाथी दुःखरूप छे. ज्ञानीने एवो राग आवे छे पण तेने ते कर्तव्यरूप मानता नथी.

अहीं कहे छे-जेने स्वरूपनी आश्रयरूप परिणतिमां-हुं चिदानंदमय वीतरागस्वभावी परमात्मद्रव्य छुं, स्वयं भगवानस्वरूप छुं-एम द्रव्यद्रष्टि थई छे ते ज्ञानी छे. तेने चारित्र मोहना उदयना निमित्ते जरा राग तो थाय छे-जुओ, ‘चारित्रमोहना उदयना निमित्तथी’ -एम कह्युं छे हों; तेमां उपादान तो पोतानुं छे. कहे छे-ज्ञानीने राग तो थाय छे परंतु रागने ते रोग समान जाणे छे तथा ते भोगसामग्रीमां जाय छे (जोडाय छे), पण तेने ते औषधि समान जाणे छे. ज्ञानी रागने के भोगपभोगसामग्रीने-कोईने