Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९४ ] [ २१ शकतो नथी, केमके आत्मा चैतन्यस्वरूप अरूपी छे. अरे, जडने तो आत्मा अडतोय नथी पछी भोगवे कयांथी? गाथा ३ नी टीकामां कह्युं ने के-द्रव्य पोताना अनंत धर्मोना चक्रने चुंबे छे पण परद्रव्यने चुंबतुं-स्पर्शतुं नथी. भाई! आवुं ज द्रव्यनुं स्वरूप छे. दरेक द्रव्य पोताना गुण-पर्यायने स्पर्शे छे पण परद्रव्यना द्रव्य-गुण-पर्यायने स्पर्शतुं ज नथी. भोगकाळे जीव स्त्रीना शरीरने अडयो ज नथी अने स्त्रीनुं शरीर जीवने अडयुं ज नथी केमके शरीर तो जड परद्रव्य छे. परद्रव्यने आत्मा अडे शी रीते के तेने भोगवे?

प्रश्नः– तो आ (-जीव) शरीरने भोगवे छे, मोसंबीनो रस पीवे छे, मैसूब खाय छे इत्यादि भोगवतो प्रत्यक्ष देखाय छे ने?

उत्तरः– धूळेय भोगवतो नथी, सांभळने; मोसंबी, मैसूब आदि तो जड, रूपी छे; स्पर्श-रस-गंध-वर्णवाळी चीज छे तथा स्त्रीनुं शरीर छे ते पण स्पर्श-रस-गंध- वर्णवाळी जड रूपी चीज छे. ज्यारे तुं अरूपी भगवान चैतन्यस्वरूप एनाथी-ए सर्वथी भिन्न छो. तुं कदीय ए कोईने अडयोय नथी अने अडी शकतोय नथी. पण संयोग देखीने अज्ञानी जीव एम माने छे के में खाधुं-पीधुं-भोग लीधो. खरेखर तो ते पदार्थोमां ठीकपणानो जे राग थयो ते रागने अज्ञानी भोगवे छे. परद्रव्यने भोगवे छे एम कहेवुं ए तो निमित्तनुं कथन छे.

आ कई जातनो उपदेश? दया पाळो, व्रत करो, तप करो, उपवास करो -एवो उपदेश होय तो कांईक समजाय, पण आवा उपदेशमां हवे समजवुं शुं?

भाई! दया पाळवी, व्रत करवां, तप करवुं अने उपवास करवा इत्यादि तो बधी रागनी क्रिया छे. एमां आत्मा कयां आव्यो? ए रागनी अज्ञानमय क्रियाओमां शुं समजवुं छे? निश्चयथी तो चैतन्यस्वरूपी परमात्मद्रव्य प्रभु आत्मा रागने अडतोय नथी केमके राग छे ए तो दुःख छे. ज्ञानस्वभावी अनाकुळ आनंदनुं ढीम प्रभु आत्मा दुःख एवा रागने केम अडे? चाहे अशुभ राग हो के शुभराग-बन्ने दुःख छे. माटे सुखधाम आनंदस्वरूपी आत्मा ते दुःखने केम अडे? आवुं भेदज्ञान करवुं ते यथार्थ समजवुं छे. समजाणुं कांई...?

अहीं आचार्यदेव एम कहे छे के-परद्रव्यने भोगववामां आवतां तेना निमित्ते सुखरूप अथवा दुःखरूप जीवनो भाव नियमथी उदय थाय छे. एटले शुं कहे छे? के आ शरीर, मन, वाणी, धन, भोजन, स्त्री इत्यादि उपर लक्ष जतां, ते वस्तुने जीव भोगवे छे एम कहेवामां आव्युं छे अने तेना निमित्ते जीवने सुख के दुःखनी कल्पना थाय ज छे, थया विना रहेती नथी. ज्ञानीने पण सुखरूप के दुःखरूप भाव थाय छे, अर्थात् ते समये तेने सुख के दुःखनी पर्याय थई जाय छे.

जुओ, १९३ गाथामां उपभोगमां ज्ञानीने द्रव्यकर्म खरी जाय छे एनी वात