समयसार गाथा-१९४ ] [ २३
अहीं ‘वेदाय छे’ एम कह्युं एनो अर्थ भोगवाय छे एम थाय छे. ‘वेदाय छे’ एटले जाणवामां आवे छे एवो अर्थ पण थाय छे पण अहीं ए अर्थ नथी, अहीं तो भोगववामां आवे छे एम अर्थ छे. परद्रव्य भोगववामां आवतां पर्यायमां जरी सुखदुःखनी क्षणिक अशुद्ध परिणति थाय छे अने तेथी सुख-दुःखरूप भाव वेदाय छे एम कह्युं छे. हवे ज्यारे ते भाव वेदाय छे त्यारे जेनी द्रष्टि राग उपर ज पडी छे एवा मिथ्याद्रष्टिने रागादिभावोना सद्भावने लीधे बंध ज थाय छे.
झीणी वात छे, प्रभु! जेने शुभाशुभ रागमां इष्ट-अनिष्टबुद्धि छे, तथा शुभ- रागमां मीठाश अने सुखबुद्धि छे ते अज्ञानी छे. आवो अज्ञानी जीव, पदार्थोने भोगवतो थको सुख-दुःखनी कल्पनाना काळे, तेमांथी मीठाश-मझा आवे छे एम मानतो थको, रागादिभावोनो सद्भाव होवाथी, बंधाय छे. मिथ्याद्रष्टिने (स्वरूपमां) आत्मभाव प्रगटयो नथी तेथी तेने रागद्वेषमोहनी हयाती छे. आथी तेने उपभोगमां थता सुख- दुःखनी कल्पनाना भाव नवा कर्मबंधनुं निमित्त थाय छे अर्थात् तेने सुख-दुःखनी कल्पना काळे जे राग-द्वेष थाय छे ते नवा कर्मबंधनमां निमित्त थाय छे. आथी मिथ्याद्रष्टिने, ते सुख-दुःखनो भाव निर्जरवा छतां नहि निर्जर्यो थको, बंध ज थाय छे. सत्तामांथी जे कर्मनो उदय आव्यो छे ते तो खरी ज जाय छे, ज्ञानी के अज्ञानी-कोईने पण खरी ज जाय छे; परंतु अज्ञानीने मिथ्यात्व अने रागद्वेष हयात-जीवता होवाथी ते परिणाम नवा कर्मबंधननुं निमित्त थाय छे.
शुं कहे छे? के जे कोई कर्मनो-शाता के अशातानो-उदय जे समये आवे छे ते समये जीवने सुखदुःखनी अवस्था थाय छे अने तेनुं तेने वेदन पण होय छे. परंतु ते वेदनना काळे, अज्ञानीने तेमां मीठाश ने सुखबुद्धि छे. आ कारणे तेने राग-द्वेष हयात होवाथी ते परिणाम तेने नवां दर्शनमोहनीय आदि कर्मबंधनुं निमित्त थाय छे.
अरे! एणे पोतानी अंदर कदी भाळ्युं नथी! जो अंदर जुए तो आखो वीतरागतानो पिंड प्रभु आत्मा जणाय अने तो रागरहित वीतराग परिणति प्रगट थाय. ल्यो, आ सर्व कथननुं तात्पर्य कह्युं. पंचास्तिकायमां आवे छे के चारे अनुयोगनुं तात्पर्य वीतरागता छे. (गाथा १७२ टीका). पंडित श्री टोडरमलजीए मोक्षमार्गप्रकाशकमां पण वीतरागतानुं प्रयोजन प्रगट करे ते जैनशास्त्र छे एम कह्युं छे. चारे अनुयोग वीतरागताने ज पुष्ट करे छे. चरणानुयोगमां भले व्रतादि रागनी वात आवे, तेमां पण रागना पोषणनी वात नथी पण क्रमशः रागना अभावनी ज त्यां वात छे. (अज्ञानी- रागी शास्त्रमांथी पण राग गोती काढे एवी एनी आदत छे).
अहीं कहे छे-अज्ञानीने जे वखते सुख-दुःखनी कल्पना थाय छे ते वखते तेने तेमां इष्ट-अनिष्टबुद्धि थवाथी मिथ्यात्वसहित अनंतानुबंधी राग-द्वेषना परिणाम