समयसार गाथा-१९४ ] [ २७ वेदन नवो बंध कर्या विना केवळ खरी जाय छे. आ वात छे. आ पहेलांनी गाथामां द्रव्यनिर्जरानी वात हती अने आ गाथामां अशुद्धता (भावकर्म) खरी जाय छे एनी वात छे. आमां तो समकितीनां श्रद्धान-ज्ञान अने विरागतानो महिमा प्रसिद्ध कर्यो छे.
त्यारे कोई कहे छे-आ ते केवो धर्म! दया पाळवी, भूख्यांने अन्न देवुं, तरस्याने पाणी पावुं, रोगीने औषध देवुं इत्यादि कहो तो समजाय.
अरे भाई! दया पाळवी इत्यादि रागनी क्रियाओमां तो धूळेय धर्म नथी; सांभळने; शुं अनाज-पाणी-औषध तुं आपी शके छे? एक रजकण पण कोण फेरवी शके ने कोण दई शके? ए रजकणोनुं परिणमन तो तेना काळे जेम थवुं होय तेम तेना कारणे ज थाय छे. धन, धान्य आदि रजकणो तो जड छे, अजीव छे. तुं जीव शुं ए अजीवनो स्वामी छो? (ना). जो दान करनार पण ए सर्व अजीवने (धनादिने) पोताना मानीने आपे छे तो ते मिथ्यात्वने ज सेवे छे. वळी दया, दान आदि रागभावने पण जे भलो माने छे ते पण मिथ्यात्वने ज सेवे छे.
अहीं तो एम कहे छे के-जेम जीव अजीवनो स्वामी नथी तेम ज्ञानी रागनो पण स्वामी थतो नथी. दया, दान आदिना भाव ज्ञानीने होय खरा, पण तेमां तेने अहंबुद्धि के स्वामीपणानी बुद्धि नथी. एने तो जेम परमांथी अहंबुद्धि उडी गई छे तेम रागना वेदनना काळमां, रागना वेदननी बुद्धि पण अंतरमांथी उडी गई छे. आ अंतरनी सूक्ष्म वात छे, भाई!
सवारमां आव्युं हतुं ने के-मिथ्यात्व ते परिग्रह छे. चाहे दया, दान, व्रतादिना भाव हो, पण ते राग छे ए राग मारो छे अने मने ए लाभदायक छे एम मानवुं ते मिथ्यात्व छे. आवुं मिथ्यात्व ते परिग्रह छे. अज्ञानी जीव आ परिग्रहना सेवनथी बंधाय छे. ज्यारे ज्ञानीने पोताना वीतराग-स्वभावी आनंदस्वरूपी आत्मानो परिग्रह छे, वीतराग परिणतिनो तेने परिग्रह छे. अहाहा...! अंदर आत्मा नित्य चिदानंदमय भगवान छे. तेनी आनंदमय परिणति थवी ते ज्ञानीनो परिग्रह छे; तेने पैसा राग, के पुण्यनो परिग्रह नथी. छ खंडना राज्यना वैभवमां ज्ञानी चक्रवर्ती रह्यो होय तो पण ते ए बधाथी उदास-उदास छे. ज्ञानीने आवी अंतरमां कोई अलौकिक ज्ञान-वैराग्यमय दशा होय छे. बापु! लौकिकथी आ अंतरनो मार्ग बहु ज जुदो छे.
लोकमां अज्ञानीओ एम माने छे के अमे धनादिनुं दान वगेरे करी शकीए छीए. पण भाई! धनादिनी आववा-जवानी क्रिया तो जडनी जडमां छे. तेमां तुं शुं करे? अरे, आ जे शरीरनी क्रिया थाय छे ते पण तारी नथी ने प्रभु! आ हाथ ऊंचो-नीचो थाय छे ते क्रिया जड रजकणोनी तेना कारणे थाय छे, जीवनी इच्छाना-विकल्पना कारणे थाय छे एम नथी, खूब गंभीर वात छे, भाई!