२८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
प्रश्नः– तो आत्माना प्रदेशो हाले-चाले छे तेथी तो ते (हाथ) ऊंचा-नीचा थाय छे ने?
उत्तरः– ना, एम पण नथी. आत्माना प्रदेश जे हाले-चाले छे ते स्वयं तेना कारणे छे अने शरीरना प्रदेश जे हाले-चाले छे ते तेना कारणे छे. कोई कोईनाथी छे एम छे ज नहि. (मात्र परस्पर निमित्त-नैमित्तिकभाव छे).
प्रश्नः– तो मोक्षमार्ग प्रकाशकमां कह्युं छे के-कोईवार इच्छा विना पण जडना जोरने कारणे आत्माना प्रदेशोनुं चालवुं थाय छे? (बीजो अधिकार).
समाधानः– आत्माना प्रदेशो चाले छे तो स्वयं पोताथी ज, परंतु ते वेळा परद्रव्य (शरीर) निमित्त होय छे तो तेना जोरथी चाले छे एम निमित्तथी त्यां कथन कर्युं छे. परद्रव्य (शरीरादि) आत्माना प्रदेशोने कर्ता थईने चलावे छे एम त्यां अर्थ नथी. जुओ, कोई वेळा शरीर, जीवनी इच्छा विना पण चाले छे अने कोई वेळा जीवने इच्छा होय तोपण शरीरनी क्रिया बनती नथी.
प्रश्नः– परंतु शरीर खसे त्यारे जीवना प्रदेश पण खसे छे ने? उत्तरः– भाई! शरीर खसे त्यारे पण जीवना प्रदेश जे खसे छे ते पोतानी तत्कालिन लायकात-योग्यताथी ज खसे छे, शरीरना कारणे नहि. जीव अने अजीव बन्ने भिन्न तत्त्व छे. शरीर अजीवतत्त्व छे ज्यारे आत्मा जीवतत्त्व छे. एक तत्त्वनो ज्यां बीजामां अभाव ज छे त्यां तेओ एक बीजाने (वास्तवमां भावपणे) शुं करे? (कांई नहि).
प्रश्नः– त्यारे अहीं गाथामां तो एम कह्युं के-ज्ञानी-अज्ञानी परद्रव्यने भोगवे छे; अने पहेलां गाथा त्रणमां (टीकामां) एम कह्युं के एक द्रव्य बीजा द्रव्यने चुंबतुं-स्पर्शतुं नथी. आमां शुं समजवुं?
समाधानः– भाई! कयां कई अपेक्षाए कथन छे ते बराबर समजवुं जोईए. गाथा त्रणमां तो वस्तुनी स्थिति दर्शावी छे के कोई कोईने स्पर्शे नहि आवुं ज वस्तु स्वरूप छे. ज्यारे अहीं जीवने कांईक भोगनी इच्छा थई अने ते ज काळे तेना निमित्ते शरीरादि परद्रव्योमां एवी ज क्रिया थाय छे तेथी जीव परद्रव्यने भोगवे छे एम आरोप दईने निमित्तनी मुख्यताथी कथन कर्युं छे. खरेखर तो ज्ञानी के अज्ञानी परद्रव्यने भोगवतो ज नथी, ते तो रागना वेदनने भोगवे छे. वळी शुद्ध निश्चयथी तो राग पण परद्रव्य छे. अहा! आवुं सांभळवानी अने समजवानी कोने फुरसद छे? पण भाई! जीवन जाय छे जीवन! जो समजण न करी तो जीवन पूरुं थई जशे अने कयांय चोरासीना अवतारमां-भवसमुद्रमां गोथां खातो चाल्यो जईश के पत्तो ज नहि लागे.