समयसार गाथा-१९४ ] [ २९
‘परद्रव्य भोगवतां, कर्मना उदयना निमित्ते जीवने सुखरूप अथवा दुःखरूप भाव नियमथी उत्पन्न थाय छे.’
सुखरूप के दुःखरूप जे अवस्था थाय छे ते तो पोतानी पर्याय पोताना (अशुद्ध) उपादानथी थाय छे. कर्मना उदयना निमित्ते ते थाय छे एम जे कह्युं ए तो निमित्तनुं ज्ञान कराववा कह्युं छे एम समजवुं. हवे कहे छे-
‘मिथ्याद्रष्टिने रागादिकने लीधे ते भाव आगामी बंध करीने निर्जरे छे तेथी तेने निर्जर्यो कही शकातो नथी; माटे मिथ्याद्रष्टिने परद्रव्य भोगवतां बंध ज थाय छे.’
शुं कह्युं? के मिथ्याद्रष्टिने रागनी रुचि छे, प्रेम छे. तेने राग-द्वेष-मोहना परिणाम हयात छे. तेथी कर्मना उदयना निमित्ते जे भोगना भाव थाय छे, सुख-दुःखना परिणाम थाय छे ते आगामी बंध करीने निर्जरे छे. अज्ञानीने जे सुख-दुःखनुं वेदन थाय छे तेमां ते स्वामीपणे प्रवर्ततो होवाथी तेने राग-द्वेष थाय छे अने तेथी तेने नवो बंध थाय छे. ते कारणे निर्जर्यो होवा छतां ते निर्जर्यो कही शकातो नथी एम अहीं कह्युं छे. माटे मिथ्याद्रष्टिने परद्रव्य भोगवतां बंध ज थाय छे, निर्जरा नहि.
हवे कहे छे-‘सम्यग्द्रष्टिने रागादिक नहि होवाथी आगामी बंध कर्या विना ज ते भाव निर्जरी जाय छे तेथी तेने निर्जर्यो कही शकाय छे; माटे सम्यग्द्रष्टिने परद्रव्य भोगवतां निर्जरा ज थाय छे. आ रीते सम्यग्द्रष्टिने भावनिर्जरा थाय छे.’
शुं कीधुं आ? के धर्मी जीवनी द्रष्टि आनंदना नाथ भगवान आत्मा उपर छे. तेथी कर्मना उदयना निमित्ते जरी सुख-दुःखनुं वेदन एक समय पूरतुं थाय छे, पण तेने रागद्वेषमोहनो अभाव छे तेथी ते वेदननो भाव बंध कर्या विना ज निर्जरी जाय छे तेथी ते खरेखर निर्जर्यो छे एम कहेवामां आवे छे. अज्ञानीने पण ते भाव निर्जर्यो तो छे ज, पण ते नवो बंध करीने निर्जर्यो छे तेथी निर्जर्यो कहेवातो नथी ज्यारे ज्ञानीने ते ज भाव बंध कर्या विना निर्जरी जाय छे तेथी तेने खरेखर ते भावनी निर्जरा थई गई एम कहेवाय छे. आवी वात छे.
प्रश्नः– पोते बोले छे एवुं प्रत्यक्ष देखाय छे अने कहे छे के आत्मा बोले नहि; आत्मा बोलतो नथी तो शुं भींत बोले छे?
उत्तरः– बापु! तने खबर नथी, भगवान! आ जे अवाज नीकळे छे ते अहीं जे शब्दवर्गणाना परमाणुओ पडया छे तेनुं परिणमनरूप कार्य छे. अरे, आ जे होठ हले छे तेना कारणे अवाज नीकळे छे एम पण नथी तो ते जीवनुं कार्य तो केम होय? तुं संयोगने ज मात्र देखे छे तेथी जीव बोले छे एम प्रत्यक्ष देखाय छे एम कहे छे पण एम छे नहि. भाई! अहीं वीतरागशासनमां तो वाते-वाते दुनियाथी फेर