Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 136.

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समयसार गाथा-१९७ ] [ ४७

(मन्दाक्रान्ता)
सम्यग्द्रष्टेर्भवति नियतं ज्ञानवैराग्यशक्तिः
स्वं वस्तुत्वं कलयितुमयं स्वान्यरूपाप्तिमुक्तया।
यस्माज्ज्ञात्वा व्यतिकरमिदं तत्त्वतः स्वं परं च
स्वस्मिन्नास्ते विरमति परात्सर्वतो रागयोगात्।।
१३६।।

नुकसाननो धणी होवाथी तेज वेपारी छे. आ द्रष्टांत सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टि पर घटावी लेवुं. जेम नोकर वेपार करनारो नथी तेम सम्यग्द्रष्टि विषय सेवनारो नथी, अने जेम शेठ वेपार करनारो छे तेम मिथ्याद्रष्टि विषय सेवनारो छे.

हवे आगळनी गाथाओनी सूचनानुं काव्य कहे छेः-
श्लोकार्थः–
[सम्यग्द्रष्टेः नियतं ज्ञान–वैराग्य–शक्तिः भवति] सम्यग्द्रष्टिने

नियमथी ज्ञान अने वैराग्यनी शक्ति होय छे; [यस्मात्] कारण के [अयं] ते (सम्यग्द्रष्टि जीव) [स्व–अन्य–रूप–आप्ति–मुक्तया] स्वरूपनुं ग्रहण अने परनो त्याग करवानी विधि वडे [स्वं वस्तुत्वं कलयितुम्] पोताना वस्तुत्वनो (यथार्थ स्वरूपनो) अभ्यास करवा माटे, [इदं स्वं च परं] ‘आ स्व छे (अर्थात् आत्मस्वरूप छे) अने आ पर छे’ [व्यतिकरम्] एवो भेद [तत्त्वतः] परमार्थे [ज्ञात्वा] जाणीने [स्वस्मिन् आस्ते] स्वमां रहे छे (-टके छे) अने [परात् रागयोगात्] परथी-रागना योगथी- [सर्वतः] सर्व प्रकारे [विरमति] विरमे छे. (आ रीत ज्ञानवैराग्यनी शक्ति विना होई शके नहि.) १३६.

*
समयसार गाथा १९७ः मथाळुं
हवे आ ज वातने प्रगट द्रष्टांतथी बतावे छेः-
* गाथा १९७ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जेम कोई पुरुष कोई प्रकरणनी क्रियामां प्रवर्ततो होवा छतां प्रकरणनुं स्वामीपणुं नहि होवाथी प्राकरणिक नथी अने बीजो पुरुष प्रकरणनी क्रियामां नहि प्रवर्ततो होवा छतां प्रकरणनुं स्वामीपणुं होवाथी प्राकरणिक छे,...’

शुं कह्युं आ? के जेम कोई छोकरानां लग्न होय अने तेना पिताए ते संबंधी कोई अन्य गृहस्थने काम सोंप्युं होय तो ते गृहस्थ ते काममां प्रवर्ते छे, छतां ते काममां ते गृहस्थने स्वामीपणुं नथी तेथी ते कामनो करनारो नथी, केम के ते गृहस्थ काम तो छोकराना पिता वती करे छे. ज्यारे छोकरानो पिता ते काममां प्रवर्ततो नथी छतां ते कामनो पोते स्वामी होवाथी ते काम तेनुं छे, ते कामनो ते करनारो छे.