Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७

‘तेवी रीते सम्यग्द्रष्टि पूर्वसंचित कर्मना उदयथी प्राप्त थयेला विषयोने सेवतो होवा छतां रागादिभावोना अभावने लीधे विषयसेवनना फळनुं स्वामीपणुं नहि होवाथी असेवक ज छे.’

आ वात अज्ञानीने आकरी पडे छे. पण थाय शुं? अहीं कहे छे-जेने अंदरमां निज आनंदरसनो स्वाद आवी गयो छे एवा सम्यग्द्रष्टिने विषयनुं सेवन छे, छतां तेने तेमां रस नथी, रुचि नथी. पोताने थयेला आनंदरसना स्वाद आगळ विषयोनो स्वाद तेने झेर जेवो लागे छे. जेम वेश्या राजा साथे रमे छे, पण ए तो राजा पैसा आपे छे तेटलो ज काळ. शुं राजा तेनो स्वामी-पति छे? (ना). विषयना काळे तो स्वामीनी जेम प्रवर्तती होय छे पण खरेखर स्वामी नथी. तेम शुद्ध चैतन्यना आनंदना रसमां स्वामीपणे प्रवर्तता धर्मी जीवने विषयना रसमां स्वामीपणुं आवतुं नथी. भारे गंभीर वात!

जुओ, पाठमां शुं लीधुं छे? के ‘पूर्वसंचित कर्मना उदयथी’... शुं कह्युं? के पूर्वे बांधेला कर्मना उदयथी ज्ञानीने संयोगो मळ्‌या छे. अने तेना सेवननो राग होवा छतां तेमां रस-रुचि नथी. आनंदना अनुभवनुं ज्यां अंदरमां जोरदार परिणमन छे त्यां विषयराग जोरदार नथी-एम कहे छे. जेम एकवार जेणे मीठा दूधपाकनो स्वाद चाख्यो होय तेने राती जुवारना रोटला फीका लागे छे तेम आनंदना रस आगळ ज्ञानीने विषयनो रस विरस लागे छे.

कहे छे-‘सम्यग्द्रष्टि पूर्वसंचित कर्मना उदयथी प्राप्त थयेला विषयोने...’ मतलब के शातानो उदय होय तो अनुकूळ सामग्री मळे छे. भाई! सामग्री तो सामग्रीना उपादानना कारणे आवे छे अने कर्मनो उदय तेमां निमित्त छे. जडकर्मना कारणे सामग्री मळे छे एम नथी. जडकर्मना रजकण जुदी चीज छे अने सामग्रीना रजकण जुदी चीज छे. (तेओ तो एकबीजाने अडताय नथी).

तो शब्दो तो आवा चोकखा छे के-‘कर्मना उदयथी प्राप्त थयेला विषयोने...’? हा, पण तेनो अर्थ शुं छे? शुं जेवुं लख्युं छे तेवो ज एनो अर्थ छे? एम अर्थ नथी हों; भाई! लखनारे जे अभिप्रायथी लख्युं छे ते अनुसार अर्थ करवो जोईए. पुण्यना उदयथी लक्ष्मी मळे छे एम कहेवुं ए तो व्यवहारनी वात छे, केमके पुण्यना अने लक्ष्मीना रजकण तो भिन्न-भिन्न छे. लक्ष्मी आवे छे ते पोताना कारणे आवे छे, पण पुण्यना उदयथी प्राप्त थाय छे एम कहेवानो व्यवहार छे. तेवी रीते पैसा जाय के न होय तो ते पापना उदयथी छे एम कहेवानो व्यवहार छे. पापकर्मनो उदय छे माटे पैसा आव्या नथी एम खरेखर नथी, पण पैसा ते काळे स्वयं आववाना न हता तेथी न आव्या, परमाणुनुं तेवुं परिणमन थवानुं न हतुं तेथी न थयुं ए यथार्थ छे. हवे आवी वात लोको न समजे, पण शुं थाय?