Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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प० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७

भगवान आत्मा त्रणलोकनो नाथ सच्चिदानंदस्वरूप छे. अज्ञानीने ते रागनी रुचिनी आडमां जणातो नथी. अहाहा...! जळनी अपार राशिथी भरेलो मोटो समुद्र जेम एक कपडानी आडमां देखाय नहि तेम अज्ञानी जीवने रागनी रुचिनी आडमां पोतानो सच्चिदानंदस्वरूप भगवान देखातो नथी. जुओ, आ शेठिया बधा बहारना वैभवना रागमां चकचूर छे ने? तेमने भगवान आत्मा भळातो नथी. अहा! कोई मोटो शेठ होय, राजा होय के देव होय, जो तेने पोताना चिदानंदमय स्वरूपने छोडीने, पूर्वना कर्मना उदयना निमित्ते प्राप्त वैभवनी द्रष्टि छे तो ते मरीने तिर्यंचादिमां ज जवानो.

(परमात्मप्रकाशमां) आवे छे ने के-‘पुण्येण होइ विहवो...’ इत्यादि-पुण्यना उदये वैभव मळे, वैभवथी मद चडे, अने मदथी मति भ्रष्ट थई जाय. अमे आवा वैभववाळा-एम परमां अहंबुद्धि-मद थतां मति भ्रष्ट थई जाय छे अने तेथी ते मरीने नरक-तिर्यंचादि दुर्गतिने ज प्राप्त थाय छे, अने चारगतिमां रखडी मरे छे.

प्रश्नः– आप कहो छो के एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करे तो पछी वैभवथी मद केम चडे?

उत्तरः– एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई न करे ए तो सत्यार्थ एम ज छे. पोते मद करे, बहारमां अहंभाव करे त्यारे बाह्य वैभवने लक्ष करीने करे छे तो वैभवथी मद चडे छे एम व्यवहारथी कहेवाय छे. वैभव मद करावे छे एम वात नथी. वैभवथी मद चडे ए तो निमित्ते बतावनारुं कथन छे. जो वैभवथी मद थई जाय तो तो समकिती चक्रवर्तीने पण मद थई जवो जोईए. भरत चक्रवर्ती छ खंडना वैभवनो स्वामी हतो, ९६ हजार तो तेने राणीओ हती, पण एने एमां कयांय आत्मबुद्धि-अहंपणानी बुद्धि न हती. सम्यग्द्रष्टि तो एम जाणे छे के ज्यां हुं छुं त्यां राग, शरीर के बहारना विषयोनो अभाव छे अने ज्यां राग, शरीर के बहारना विषयो छे त्यां मारो अभाव छे. विषयोने सेवतो होय ते काळे पण तेने आवां ज्ञान-श्रद्धान होय छे.

अहीं कह्युं ने के-सम्यग्द्रष्टि विषयोने सेवतो होवा छतां रागादिभावोना अभावने लीधे विषयसेवनना फळनुं स्वामीपणुं नहि होवाथी असेवक ज छे. जुओ, ज्ञानीने किंचित् राग थाय छे पण तेनुं एने स्वामीपणुं नथी, माटे ते सेवतो छतां असेवक ज छे. अहा! ज्ञानानंदस्वभावी पोतानी वस्तुनो अनुभव थतां जे अतीन्द्रिय आनंदनो-शांतिनो वैभव प्रगट थयो तेनी आगळ धर्मीने बाह्य विषयो फिक्का-रसहीन लागे छे. समकिती इन्द्रने इन्द्रासनमां के करोडो अप्सराओमां कयांय रस नथी. आत्माना अनाकुळ आनंदना रसना आस्वाद आगळ तेने बीजुं बधुंय बेस्वाद-झेर जेवुं लागे छे. कदाचित रागनी वृत्ति थई आवे तोपण ते विषयोने काळा नाग समान जाणे छे. शुं काळा नागना मोंमां कोईने आंगळी मूकवानो भाव थाय खरो? न थाय. तेम ज्ञानीने