प२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
अन्यमतमां पण वैराग्यनी वात आवे छे ने? त्यां अंतर्द्रष्टि नथी पण बहारमां वैराग्य लागे एवुं होय छे. भर्तृहरिनी वात आवे छे के-९२ लाख माळवानो अधिपति भर्तृहरि बावो थई जाय छे अने त्यारे कहे छे-
अरे! आ संसार! माळवाधिपतिनी राणी एक अश्वपालथी यारी करे! अरर! आ शुं? शुं आ संसार? आम बहारथी वैराग्यनुं चिंतवन होय, पण ए तो मात्र मंदरागनी अवस्था छे अने ते क्षणिक छे. जेमां चिदानंदस्वरूप भगवान आत्माना ज्ञान- श्रद्धान होय अने जेमां अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय ते दशा साची अंतर- वैराग्यनी दशा छे अने तेना बळथी अहीं ज्ञानीने सेवतो छतां असेवक कह्यो छे. समजाणुं कांई...?
जेम नाटकमां पुरुष स्त्रीनो वेश पहेरीने आवे तो जोनारा लोको एम कहे के आ स्त्री छे, पण ते पुरुष तो पोते एम ज माने के-हुं पुरुष छुं अने स्त्रीनो तो मारो भेख छे. तेम धर्मी जीवने शरीरादिनो भेख गमे ते जातनो होय पण हुं-आत्मा छुं अने आ शरीरादि जूठा खेल छे-एम माने छे. अरे! सेवकपणानो खेल (भेख) होय त्यारे पण, ए खोटो खेल छे, हुं एमां रमतो नथी-एम ज ते माने छे अहाहा...! अमे ज्यां रमीए छीए त्यां (-शुद्धात्मामां) आ पर विषयो छे नहि अने एमां अमे छीए ज नहि-आम धर्मात्मा माने छे. आम विषयसेवनना फळना स्वामित्वथी रहित ज्ञानी सेवतो छतां असेवक छे. ल्यो, आवो धर्म! बापु! धर्म कोई असाधारण अलौकिक चीज छे. दया, दान, भक्ति आदि करे अने माने के धर्म थई गयो पण एमां तो धूळेय धर्म नथी, सांभळने. ए तो बधो राग पुण्यबंधनुं कारण छे अने एमां धर्म माने तो मिथ्यात्व छे.
अहीं कहे छे-भगवान आत्माना आनंदनुं ज्यां भान थयुं त्यां आखी दुनिया प्रत्येनी अशुद्धतानो (अभिप्रायमां समस्त शुभ अशुभ भावोनो) त्याग थई जाय छे अने ते साचो वैराग्य छे. आवो वैराग्य जेने प्रगट थयो छे ते सेवक छतां असेवक छे. ज्यारे मिथ्याद्रष्टि बहारनुं बधुं त्यागे छे, स्त्री, कुटुंब आदि छोडी बावो थई जाय छे, पण अंतर-अनुभव विना द्रष्टि मिथ्या छे, रागनी रुचि छे तो ते असेवक-बहारथी सेवतो नथी छतां पण ते सेवक ज छे.
द्रष्टांत आपे छे-‘कोई शेठे पोतानी दुकान पर कोईने नोकर राख्यो. दुकाननो बधो वेपारवणज-खरीदवुं, वेचवुं वगेरे सर्व कामकाज-नोकर करे छे तोपण ते