प४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ व्रत ने तप केवां? कदाचित् रागनी मंदता होय तोपण ते मिथ्यात्वसहित ज छे. एवां व्रत ने तपने भगवाने बाळव्रत ने बाळतप एटले के मूर्खाईभर्यां व्रत ने मूर्खाईभर्यां तप कह्यां छे. अहीं कहे छे-अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप चैतन्यमहाप्रभु भगवान आत्माना अनाकुळ आनंदनो जेने स्वाद आव्यो छे ते समकितीने कोई पण प्रकारना रागमां मीठाश नथी. तेने सर्व रागमांथी रस ऊडी गयो छे.
अहाहा...! जेम नोकर वेपार करनारो नथी तेम सम्यग्द्रष्टि विषय सेवनारो नथी, अने जेम शेठ वेपार करनारो छे तेम मिथ्याद्रष्टि विषय सेवनारो छे.’ झीणी वात छे प्रभु! आत्मानो स्वभाव ज वीतरागस्वरूप छे अने जैनधर्म पण वीतरागस्वरूप छे. जेटलां (आज्ञानां) कर्तव्य कह्यां छे ते बधांय वीतरागतानी ज पुष्टिरूपे कह्यां छे, रागना पोषण माटे नहि. रागनी वात कही छे पण ए तो ज्ञानीने क्रमशः प्रगट थती अने वृद्धि पामती वीतरागतानी साथे सहकारी केवो राग होय छे तेनुं कथन कर्युं छे, रागनी पुष्टि माटे तेनुं कथन कर्युं नथी. व्रतादिनी वात ज्यां करी छे त्यां रागनुं पोषण कराववुं नथी, परंतु क्रमशः थता रागना अभावनुं ज पोषण कराववुं छे. तेथी अहीं कह्युं के-सम्यग्द्रष्टि विषय सेवनारो नथी केमके तेने विषयमां रस नथी, रागमां आत्मबुद्धि नथी.
‘परमात्मप्रकाश’मां कह्युं छे के-जे रागने पोतानो मानीने सेवे छे तेने आत्मा हेय तरीके वर्ते छे अने जेने आत्मा उपादेय तरीके वर्ते छे तेने राग हेयपणे होय छे. ‘प्रवचनसार’नी गाथा २३६ मां आवे छे के-काया तेम ज कषायने जे पोताना माने छे ते, बाह्यथी छकायनी हिंसा न करतो होय तोपण छकायनी हिंसानो करनारो ज छे. तेवी रीते अज्ञानी बहारथी विषय न सेवतो होय तोपण कायाने अने कषायने पोताना मानतो होवाथी कषायनुं फळ जे विषयवासनाथी युक्त विषयनो सेवनारो ज छे एम अहीं कहे छे. अहाहा...! मार्ग बहु जुदी जातनो छे, बापा!
हवे आगळनी गाथाओनी सूचनानुं काव्य कहे छेः-
‘सम्यग्द्रष्टेः नियतं ज्ञान–वैराग्य–शक्तिः भवति’ सम्यग्द्रष्टिने नियमथी ज्ञानवैराग्यनी शक्ति होय छे.
शुं कह्युं? सम्यक् नाम सत् एनी द्रष्टि जेने थई छे ते सम्यग्द्रष्टि छे; अर्थात् जे अतीन्द्रिय ज्ञान अने आनंदथी भरेलो त्रिकाळी ध्रुव ज्ञायकस्वभावी भगवान आत्मा तेनां द्रष्टि अने अनुभव जेने थयां छे ते सम्यग्द्रष्टि छे. अहाहा...! पोताना त्रिकाळी सत् भगवान आत्मानो जेने सत्कार अने स्वीकार थयो छे, जेने निज स्वरूपनो