समयसार गाथा-१९७ ] [ पप अंतरमां महिमा थवाथी स्वरूप प्रति ढलण-वलण थयुं छे एवा सम्यग्द्रष्टिने ज्ञान अने वैराग्य बन्ने शक्ति होय छे. हवे तेनुं कारण कहे छे के-
मुक्तया’ स्वरूपनुं ग्रहण अने परनो त्याग करवानी विधि वडे ‘स्वं वस्तुत्वं कलयितुम्’ पोताना वस्तुत्वनो अभ्यास करवा माटे, ‘इदं स्वं च परं’ ‘आ स्व छे अने आ पर छे’ ‘व्यतिकरम्’ एवो भेद ‘तत्त्वतः’ परमार्थे ‘ज्ञात्वा’ जाणीने ‘स्वस्मिन् आस्ते’ स्वमां रहे छे अने ‘परात् रागयोगात्’ परथी-रागना योगथी ‘सर्वतः’ सर्व प्रकारे ‘विरमति’ विरमे छे.
प्रथम करवानुं होय तो आ छे के स्वरूपनुं ग्रहण अने रागनो त्याग; अने ते बन्ने साथे ज होय छे. श्रीमद् राजचंद्रे टूंकामां कह्युं छे के-‘तारे दोषे तने बंधन छे, ए संतनी पहेली शिक्षा छे. तारो दोष एटलो ज के अन्यने पोतानुं मानवुं, पोते पोताने भूली जवुं.’ पोताना स्वरूपने भूलीने परने पोतानुं मानवुं ए महा अपराध छे अने ते पोतानो अपराध छे, कोई कर्मने लईने छे एम नथी. संवर अधिकारमां आवे छे के-
अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन।।
जेओ मुक्तिपदने पाम्या छे ते रागथी भिन्न पडीने भेदविज्ञानथी (मुक्ति) पाम्या छे अने जेओ बंधायेला छे तेओ भेदविज्ञानना अभावने लीधे ज बंधायेला छे. (कर्मने कारणे बंधायेला छे एम नहि).
भेदविज्ञानथी मुक्ति पाम्या छे एनो अर्थ ए आव्यो के व्यवहारना रागथी भिन्न पडीने मुक्ति पाम्या छे, पण व्यवहारना रागथी मुक्ति पाम्या छे एम नहि. भाई! राग छे; अने तेने जाणनार व्यवहारनय पण छे. व्यवहारनयनो विषय ज नथी एम कोई कहे तो ते यथार्थ नथी; परंतु ते आश्रय करवा लायक नथी एम वात छे, तेने हेय तरीके जाणवालायक छे. पूर्णानंदनो नाथ प्रभु आत्मा ज एक आश्रय करवा लायक उपादेय छे.
भगवान आत्मा अतीन्द्रिय आनंदथी ठसोठस भरेलो सच्चिदानंदस्वरूप प्रभु छे; ते सदाय वीतरागस्वभावी अकिंचनस्वरूप छे. दश धर्ममां आकिंचन्य धर्म आवे छे ने? ए तो प्रगट अवस्थानी वात छे. ज्यारे आ तो आत्मानुं स्वरूप ज अकिंचन छे एम वात छे. आवा निजस्वरूपनुं ग्रहण अने परना त्याग करवानी विधि वडे सम्यग्द्रष्टि स्वमां टके छे अने परथी-रागथी विरमे छे. जुओ! आ विधि! पूर्णानंदस्वरूपनुं ग्रहण अने दुःखरूप रागनो-अशुद्धतानो त्याग ए विधि छे. एकली बहारनी चीज त्यागी