प६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ एटले थई गयो त्यागी-एवुं स्वरूप (त्यागनुं) नथी. परंतु रागथी खसीने शुद्धनो आदर करतां पर्यायमां शुद्धता प्रगटे छे अने अशुद्धतानो अभाव थई जाय छे. आ विधि, आ मार्ग अने आ धर्म छे. हितनो मार्ग तो आवो छे बापु!
कोई अज्ञानीओ एम कहे छे के कर्मथी विकार थाय छे. एनो अर्थ ए थयो के जे शुभभाव थाय छे ते पण कर्मने लईने थाय छे. वळी ते कहे छे शुभभावथी शुद्धता थाय छे. एटले (एना मत प्रमाणे) छेवटे एम आव्युं के कर्मने लईने शुद्धता-धर्म थाय छे. अरे! एणे सत्यने कदी सांभळ्युं ज नथी.
पण जैनधर्ममां तो बधुं कर्मने लईने ज थाय ने? बीलकुल नहि. बधुं कर्मने लईने थाय ए मान्यता जैनधर्म नथी. हा, कर्म एटले कार्य-शुद्धोपयोगरूप कार्य-ते वडे बधुं (-धर्म) थाय छे ए वात तो छे, परंतु जडकर्मथी एटले के परथी आत्मामां कांई (शुभभाव के धर्म) थाय छे ए वात यथार्थ नथी, केमके आत्मामां अनादिथी अकारण-कार्यत्व नामनो गुण पडयो छे अने तेथी आत्मा रागनुं कार्य पण नथी अने रागनुं कारण पण नथी. स्वाश्रये शुद्धोपयोगरूप परिणमन थाय ते आत्मानुं कार्य छे अने ते जैनधर्म छे. आ चोथा गुणस्थाननी वात छे. सातमे गुणस्थाने तो शुद्धोपयोगनी स्थिरतानी-चारित्रना शुद्धोपयोगनी वात छे.
जेम शीरो करवानी विधि ए छे के-पहेलां लोटने घीमां शेके अने पछी तेमां साकरनुं पाणी नाखे तो शीरो थाय. तेम स्वरूपना ग्रहण अने परना त्यागनी विधि वडे धर्म थाय छे. मार्ग आ छे भाई!
त्यारे कोई (अज्ञानी) एम कहे छे के ज्यां ज्यां योग्य निमित्त आवे छे त्यां त्यां निमित्तथी थाय छे एम मानवुं जोईए. निमित्तथी थाय ज नहि एम मानवुं बराबर नथी.
अरे भगवान! तुं शुं कहे छे आ? भाई! निमित्त (कर्म) तो पर जड तत्त्व छे अने जे पुण्यना परिणाम छे ते चैतन्यना विकाररूप परिणाम छे. खरेखर तो ते विकारना परिणाम पोताना षट्काररूप परिणमनथी थया छे, ते ते काळे पोतानो जन्मकाळ छे तेथी थया छे. भाई! षट्कारकरूप थईने परिणमवुं ते, ते विकारनी पर्यायनो ते काळे धर्म एटले स्वभाव छे. ते कांई निमित्तने-कर्मने लईने थाय छे एम नथी. कर्म छे ए तो अजीवद्रव्य छे. आखी वस्तु ज बीजी छे, तो पछी बीजी चीजने लईने शुं बीजी चीज थाय? (न थाय).
अहीं कहे छे-‘स्वरूपनुं ग्रहण अने परनो त्याग करवानी विधि वडे पोताना वस्तुत्वनो अभ्यास करवा माटे...’ जोयुं? वस्तु भगवान आत्मा छे अने तेनुं वस्तुत्व कहेतां स्वरूप अतीन्द्रिय आनंद अने ज्ञान छे. तेनो अभ्यास एटले वारंवार