समयसार गाथा-१९७ ] [ प७ अनुभव करवा माटे ज्ञानी आ स्व छे अने आ पर छे एवो भेद परमार्थे जाणीने स्वमां रहे छे अने परथी विरमे छे, अर्थात् ज्ञानी रागथी खसे छे अने स्वभावमां वसे छे.
एक तो आवुं सांभळवा मळे नहि अने कदाचित् सांभळवा मळे तो अज्ञानी विरोध करे छे. पण भाई! कोनो विरोध करे छे भगवान! तुं? तने खबर नथी भाई! पण वीतराग मार्ग ज आवो छे; वस्तुनुं स्वरूप ज आवुं छे के ज्यां स्वनुं ग्रहण होय छे त्यां ज रागनो-परनो त्याग होय छे. तुं व्रतादिने व्यवहार कहे छे पण अज्ञानीने कयां व्यवहार होय छे? ए तो स्वरूपना अनुभवनारा ज्ञानीने जे किंचित् सहकारी व्रतादिनो राग होय छे तेने व्यवहार कहीए छीए. वस्तु तो आ रीते छे, पण अज्ञानीने तेनी पकडमां मोटो द्रष्टि फेर थई गयो होय छे. (ते व्रतादिने ज धर्म माने छे).
अहाहा...! ‘स्वरूपनुं ग्रहण अने परनो त्याग करवानी विधि वडे...’ केवुं टूंकुं अने ऊंचुं परमार्थ सत्य! जेम सक्करकंद एकली साकरनो कंद छे तेम भगवान आत्मा पूर्णानंदस्वरूप प्रभु एकला अतीन्द्रिय आनंदनो कंद छे. तेनुं ग्रहण करतां तेमांथी आनंदनी अने शांतिनी परिणति उत्पन्न थाय छे; ते कांई व्यवहाररत्नत्रयना रागने लईने थाय छे एम नथी; रागनो तो एमां (यथासंभव) त्याग थई जाय छे. आवुं स्वरूप छे. भाग्य होय एना काने पडे एवी वात छे अने अंतरमां जाग्रत थई पुरुषार्थ करे ए तो न्याल थई जाय एवी आ चीज छे. ज्यां रागथी खसीने अंदर वळे के तरत ज धर्म थाय छे. अहो! स्वरूप ग्रहणनो आ अद्भुत अलौकिक मार्ग छे! पण शुं थाय? वर्तमानमां अज्ञानीओए मार्गने पींखी नाख्यो छे! अरे! जे मार्ग नथी तेने तेओ मार्ग कहे छे!
प्रश्नः– तो मोक्षमार्ग प्रकाशकमां एम आवे छे के-उदय तीव्र होय त्यारे जीव धर्म न करी शके ने उदय मंद होय त्यारे तेने अवकाश छे?
उत्तरः– हा, पण एनो अर्थ शुं? एनो अर्थ ए थयो के ज्यारे जीवने तीव्र कषायना परिणाम थाय छे त्यारे तो तेने धर्मोपदेश सांभळवानी पण लायकात होती नथी, पछी धर्म पामवानी तो वात ज कयां रही? अने ज्यारे मंदकषाय होय त्यारे पुरुषार्थ करे तो अवकाश छे. पण तेथी शुं ते कर्मने (उदयने) लईने छे? ना; एम नथी. (एम कहेवुं ए तो निमित्तनुं कथन छे).
गाथा १३ मां बे बोल आवे छे ने? के आस्रव थवा योग्य अने आस्रव करनार- ए बन्ने आस्रव छे. त्यां पुण्य-पापना भावपणे थवा योग्य ए पोतानी पर्याय छे अने तेमां आस्रव करनार एटले द्रव्यास्रवनुं-कर्मनुं निमित्त छे. आस्रव थवा योग्य