प८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ पोतानी पर्याय तो पोताना (अशुद्ध) उपादानथी थई छे, अने एमां द्रव्यास्रव-कर्म निमित्त मात्र छे; त्यां एम नथी के कर्मनो उदय थयो माटे पर्यायमां आस्रवभाव थयो छे, समजाणुं कांई...? (द्रव्यास्रव जीवना भावास्रवमां निमित्त छे, पण ते जीवने भावास्रव करावी दे छे एम नथी).
प्रश्नः– परंतु कर्मना उदयना कारणे शुभभाव आदि आस्रवभाव थाय छे एम शास्त्रमां आवे छे ने?
उत्तरः– हा, पण ए तो निमित्तनी विवक्षाथी कथन छे. ए शुभभाव तो जीवनी पोतानी भावमंद थवानी लायकात हती तेथी थयो छे. ते ते काळे एवी ज पर्यायनी पोतानी लायकात छे; ते ते काळे शुभभावना षट्कारकपणे थवुं ते पर्यायनो स्वकाळ छे. अहीं कहे छे-ज्ञानीने ते हेयपणे वर्ते छे.
अहीं कह्युं ने के-स्वरूपनुं ग्रहण अने परनो त्याग करवानी विधि वडे ज्ञानी स्व- परने भिन्न जाणीने स्वमां रमे छे अने परथी विरमे छे. अहा! अस्तिमां स्वने पकडवो अने रागनी नास्ति-अभाव करवो, रागनी उपेक्षा करी तेना अभावपणे वर्तवुं -ए विधि छे. अज्ञानीनी विधि करतां आ तद्न जुदी जातनी विधि छे. भगवान! हजु तने मार्गनी खबर नथी! दीपचंदजी ‘भावदीपिका’मां लखी गया छे के-अत्यारे आगम प्रमाणे श्रद्धावान कोईने हुं जोतो नथी अने सत्यने कहेनारो कोई वक्ता पण देखातो नथी. वळी मोढे कहीए छीए ते कोई मानतुं नथी तेथी आ लखी जाउं छुं. जुओ वर्तमान मूढता! मोक्षमार्ग प्रकाशकमां श्री टोडरमलजी साहेबे लख्युं छे के-जेम वर्तमानमां हंस देखाता नथी तेथी शुं कागडा आदि अन्य पक्षीओने हंस मनाय? न मनाय. तेम वर्तमान क्षेत्रमां कोई साधु देखाता नथी तेथी शुं वेशधारीओमां मुनिपणुं मानी लेवाय? न मानी लेवाय. जेम हंसने सर्वकाळे लक्षण वडे ज मानीए तेम साधुने पण सर्वत्र लक्षण वडे ज मानवा योग्य छे. साधुना जे लक्षण छे तेना वडे जोशो तो साधुपणुं यथार्थ जणाशे.
प्रश्नः– रागनो त्याग ज्ञानीने छे, परंतु कर्ममां उदय मंद थयो छे माटे रागनो त्याग तेने थाय छे ने?
उत्तरः– एम नथी, भाई! कर्ममां तो उदय गमे तेवो हो, पण स्वरूपनुं ग्रहण थतां रागनो त्याग थाय छे. भाई! आ तो अध्यात्मना शब्दो छे. त्रणलोकना नाथने हलावी नाख्यो छे! कहे छे-जाग रे जाग नाथ! अनंतकाळ घणा घेनमां गाळ्यो छे, हवे निंदर पालवे नहि, हवे भगवानने-निजस्वरूपने ग्रहण कर. स्वरूपने ग्रहण कर एटले के पोते शुद्ध चिदानंदघनस्वरूप परमात्मस्वरूप छे तेनो आश्रय कर अने रागनो आश्रय छोडी दे, रागनो अभाव कर. आ प्रमाणे रागनो त्याग ते त्याग