Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९७ ] [ प९ छे, बाकी बहारना त्याग तो प्रभु! द्रव्यलिंग धारी-धारीने अनंतवार कर्या छे. पण तेथी शुं? भावलिंग विना बधुं फोगट छे.

भावपाहुडमां आवे छे के-‘भावहि जिनभावना जीव’ हे जीव! जिनभावना भाव. जिनभावना कहो के सम्यग्द्रष्टिनी भावना कहो के वीतरागपणानी भावना कहो-ए बधुं एक ज छे. एना विना द्रव्यलिंग अनंतवार धारण कर्यां छे. ते एटली वार धारण कर्यां छे के द्रव्यलिंग धारीने पछी मरीने अनंतां जन्म-मरण एक एक क्षेत्रे कर्यां छे. द्रव्यलिंग धारीने जे लोंच कर्या तेना एक एक वाळने एकठो करीए तो अनंता मेरु पर्वत ऊभा थई जाय एटली वार द्रव्यलिंग धारण कर्यां छे. पण भाई! भावलिंग विना द्रव्यलिंग साचुं होई शकतुं नथी-एम त्यां कहेवुं छे. जेने भावलिंग अर्थात् सम्यग्दर्शन- ज्ञान-चारित्र प्रगटयुं छे तेने द्रव्यलिंग-पंचमहाव्रतनो विकल्प अने नग्नता आदि ज होय छे. परंतु भावलिंग विना बहारथी द्रव्यलिंग धारण कर्युं होय तेने वास्तविक द्रव्यलिंग व्यवहारे पण कही शकातुं नथी.

भगवान आत्मा सदाय शुद्ध चिदानंदघनस्वरूप छे. ते स्वरूपनी उपादेयबुद्धि अने रागमां त्यागबुद्धि वडे, कहे छे, पोताना वस्तुत्वनो अभ्यास करवो. शुं कह्युं ए? के आनंदस्वरूप, ज्ञानस्वरूप पोते अखंड एकरूप वस्तु छे अने तेनुं ‘पणुं’ एटले ज्ञान, आनंद, शांति, वीतरागता तेनो भाव छे. तेनो अभ्यास करवो एटले वारंवार तेनो अनुभव करवो. आवो अनुभव करवा माटे आ एक ज्ञानानंदस्वरूप ते हुं स्व छुं अने रागादिभाव सर्व पर छे एवो भेद परमार्थे जाणीने ज्ञानी स्वमां रहे छे अने परथी - रागथी विरमे छे. ‘परमार्थे जाणीने’ एम कह्युं छे ने? मतलब के रागादि परथी भिन्न पडीने अंतरमां ज्ञानानंदस्वरूप भगवान ज्ञायकनो, जेमां आनंदनुं वेदन प्रगट थयुं छे तेवो अनुभव करीने ज्ञानी स्वमां रमे छे अने परथी सर्व प्रकारे विरमे छे; व्यवहारना रागथी पण ते सर्व प्रकारे विरमे छे.

ज्ञानी परथी भेद पाडीने स्वमां स्थिर थाय छे ते रागने कारणे थाय छे एम नथी, पण रागनो भेद करवाथी स्वमां स्थिर थाय छे, तेथी तो कह्युं के परथी-रागना योगथी सर्व प्रकारे विरमे छे. अहाहा...! श्लोक तो जुओ! शुं एनी गंभीरता छे! ज्ञानी स्वमां रहे छे अने परथी-रागना योगथी सर्व प्रकारे विरमे छे-आ ज्ञान-वैराग्यनी शक्ति विना होई शके नहि. ज्ञान-वैराग्यनी कोई अचिंत्य शक्ति छे जे वडे ज्ञानी स्वमां रहे छे अने रागथी निवर्ते छे-खसे छे. स्वमां वसवुं अने परथी-रागथी खसवुं-ए ज्ञान-वैराग्यनी शक्ति विना होई शके नहि. अहाहा...! बहु टूंकी पण आ मूळ मुदनी रकमनी वात छे.

[प्रवचन नं. २६७ (शेष), २६८*दिनांक २०-१२-७६ अने २१-१२-७६]