समयसार गाथा-१९८ ] [ ६१
जुओ! स्वभावथी उत्पन्न थयेला नथी एटले ते भावो द्रव्यकर्मना विपाकथी थया छे एम कह्युं छे, बाकी तो ते भावो पोतामां पोताना कारणे उत्पन्न थयेला छे.
गाथामां तो कर्मना उदयना विपाकथी थया लख्युं छे; तो शुं एनो अर्थ आवो छे? हा, भाई! तेनो अर्थ आवो छे. कर्मनो उदय थयो कयारे कहेवाय? के ज्यारे जीव विकारपणे थाय त्यारे तेने कर्मनो उदय थयो एम कहेवामां आवे छे. ए तो पहेलां आवी गयुं छे के-कर्मनो उदय आव्यो होय छतां विकारपणे न परिणमे तो ते उदय खरी जाय छे. ज्ञानीने जेवी रीते उदय खरी जाय छे तेवी रीते अज्ञानीने पण जे उदय होय छे ते खरी जाय छे, पण अज्ञानी उदयकाळे रागनो स्वामी थईने रागने करे छे माटे तेने नवो बंध करीने उदय खरी जाय छे. आवी वात खास निवृत्ति लईने समजवी जोईए.
कहे छे-कर्मना उदयना विपाकथी उत्पन्न थयेला अनेक प्रकारना भावो छे ते मारा स्वभावो नथी. जुओ, कर्मनो उदय तो निमित्त मात्र छे, पण निमित्त वखते जीव पोते ते भावोरूपे परिणम्यो छे माटे उदयना विपाकथी भावो उत्पन्न थया छे एम कह्युं छे. अर्थात् राग आत्माना आनंदनो विपाक-आनंदनुं फळ नथी तेथी जे राग छे ते कर्मना विपाकनुं फळ छे एम कह्युं छे.
प्रश्नः– तमे तो आमां जे लख्युं छे एनाथी बीजो अर्थ करो छो. समाधानः– भाई! तेनो अर्थ ज आ छे. अहा! धर्मी एम जाणे छे के कर्मना निमित्तथी थयेला भावो मारा स्वभावो नथी. ‘निमित्तथी थयेला’-एनो अर्थ ए छे के तेना उपर लक्ष करवाथी, तेने आधीन थईने परिणमवाथी जे पर्यायनी परिणति थाय छे तेने निमित्तथी थई-एम कहेवाय छे. बाकी तो ते पर्याय पोतानामां पोताथी थई छे. छतां ते निज स्वभाव नथी.
अहाहा...! पोतानी चीज एक आनंदना स्वभावनुं निधान प्रभु छे. तेने जाणनार-अनुभवनार धर्मी जीवने जरा कर्मना निमित्तमां जोडातां-तेने वश थतां-जे विकार थाय छे ते कर्मनो पाक छे, परंतु आत्मानो पाक नथी. अनेक प्रकारना भावो एटले के दया, दान, व्रत, तप, भक्ति, पूजा इत्यादि जे भावो छे ते मारा स्वभावो नथी केमके ‘हुं तो आ (प्रत्यक्ष अनुभवगोचर) टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभाव छुं’-आम ज्ञानी जाणे छे. हुं तो प्रत्यक्ष अनुभवगम्य छुं, अर्थात् मारी वर्तमान ज्ञानपर्याय परनी अपेक्षा विना पोताने प्रत्यक्ष अनुभवे ते हुं छुं. अहाहा...! मारा प्रत्यक्ष अनुभवमां जे आवे ते हुं छुं. (प्रवचनसारमां) अलिंगग्रहणना छठ्ठा बोलमां आवे छे के-पोताना स्वभाव वडे जाणवामां आवे एवो प्रत्यक्ष ज्ञाता हुं छुं.