Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९८ ] [ ६३

याद केम न रहे? भगवान! तुं ज्ञानस्वरूप आत्मा छो के नहि? आ तो बहु टूंकु छे के-सम्यग्द्रष्टि धर्मी जीव सामान्यपणे समस्त कर्मजन्य भावोने पर जाणे छे ने पोताने एक ज्ञायकभाव ज जाणे छे. अहाहा...! ज्ञानीने जे व्रत, तप, दया, दान, भक्ति इत्यादिनो राग आवे छे तेने ते पोताना स्वरूपथी बहार पर जाणे छे; पोते तो एक ज्ञायकस्वरूप ज छे-बस एम ज अनुभवे छे. व्रतादिना भाव ते धर्मनुं के धर्मीनुं स्वरूप ज नथी.

[प्रवचन नं. २६८ (चालु)*दिनांक २१-१२-७६]