समयसार गाथा-१९९ ] [ ७प थयेलां जे शुभराग अने इन्द्रियज्ञान ते पण मारां कार्य नहि; केमके हुं तो शुद्ध ज्ञायकमात्र छुं. भाई! आवुं समजवा माटे पण पात्रता जोईए, केमके एने आखो संसार उथलावी नाखवो छे!
प्रश्नः– अहीं एम कहेवुं छे के उदयभाव आत्मानो नथी, कर्मपुद्गलनो छे; ज्यारे तत्त्वार्थसूत्रमां उदयभाव ‘जीवस्य स्वतत्त्वम्’–जीवनो छे एम कह्युं छे. तो आ केवी रीते छे?
उत्तरः– उदयभाव जीवनी पर्यायमां छे ते अपेक्षाए ते जीवनो छे, पण ते जीवस्वभावमां नथी ए अपेक्षाए ते कर्मनो छे एम कह्युं छे. बीजे एम पण आवे छे के उदयभाव पारिणामिकभावे छे. त्रिकाळी वस्तु परम पारिणामिकभावे छे ज्यारे जे विकार छे ते पारिणामिकभावे छे. त्यां स्वनी (पर्यायनी) अपेक्षा तेने पारिणामिकभाव कह्यो छे, परंतु परनी अपेक्षा लेतां तेने उदयभाव कहेवाय छे. ज्ञानी कहे छे-विकारने चाहे पारिणामिक भाव कहो, चाहे उदयभाव कहो-ते मारो स्वभाव नथी, ते मारी चीज नथी, ते पुद्गलनुं कार्य छे.
तो आ परम पारिणामिकभाव शुं छे? भाई! सहज अकृत्रिम सदाय एकरूप अनादि-अनंत पोतानी एक चैतन्यमय चीज छे ते परम पारिणामिकभाव छे. अने बदलता विकारना परिणामने निमित्तनी अपेक्षाए उदयभाव कहे छे अने स्वनी अपेक्षा पारिणामिकभावनी पर्याय कहे छे. ज्ञानी तेने, ते पोतानो स्वभाव नथी तेथी पुद्गलकर्मनो जाणी काढी नाखे छे. आ प्रमाणे जे ते अपेक्षा जाणवी जोईए.
हवे चक्षु पछी ‘घ्राण-’ घ्राण एटले नाक. आ नाक छे ते जड कर्मनुं कार्य छे. आत्मानुं नहि. नाक मारुं नथी केमके ए तो माटी जड धूळ छे माटे ते जडनुं कार्य छे.
पण सूंघवानुं ज्ञान तो नाकथी थाय छे? भाई! ज्ञान तो पोताथी थाय छे. मूढ अज्ञानी जीव माने छे के ज्ञान इन्द्रियो वडे थाय छे, पण एम छे नहि. ज्ञान तो अंदर ज्ञाननी पर्याय छे एनाथी थाय छे. नाकथी ज्ञान थाय छे एम छे ज नहि. भाई! धर्म चीज बहु सूक्ष्म छे. लोकोने तेनी वात काने पडी नथी, पछी तेनी प्राप्ति तो कयांथी थाय?
हवे ‘रसन’. रसन कहेतां जीभ. आ जीभ छे ते जड पुद्गल छे. धर्मी जीव तेने जड कर्मनुं कार्य जाणे छे केमके ते जीवस्वभाव नथी. अहाहा...! हुं शुद्ध ज्ञायकमात्र छुं एम अनुभवनार ज्ञानी जीभने भिन्न पुद्गलमय जाणे छे.