८८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ तेओ कहे छे-महाव्रतना परिणाम चारित्र नथी पण चारित्रनो दोष छे, अने दोष छे तेथी ते हेय छे. पण रागना-व्यवहारना रागी जीवोने आ वात बेसती नथी अने रागने- व्यवहारने ज धर्म जाणी तेमां ज संतुष्ट रहे छे. तेमने अहीं कहे छे-रागना रागी जीवो अर्थात् परद्रव्य प्रति रागद्वेषमोहवाळा जीवो रागमां ज संतुष्ट रही महाव्रतादि पाळे छे तो पाळो, अने उत्कृष्टपणे-उत्कृष्टपणे हों-समितिनुं आचरण करे छे तो करो, तोपण तेओ पापी ज छे. अहाहा...! एकेन्द्रियने पण दुःख न थाय एम जोईने चाले, निर्दोष आहार-पाणी ले तथा हित-मित वचन कहे इत्यादि उत्कृष्टपणे समिति पाळे तोपण ते रागना रागी जीवो पापी ज छे-बहु आकरी वात भगवान!
प्रश्नः– पापी-अशुभभाव करनारो तो नवमी ग्रैवेयक जई न शके; ज्यारे आ (महाव्रतादिनो पाळनारो) तो नवमी ग्रैवेयक जाय छे, तो पछी तेने पापी केम कह्यो?
उत्तरः– भाई! पापी नवमी ग्रैवेयक न जाय ए साचुं अने आ पुण्य उपजावीने जाय छे. परंतु निश्चयथी तो पुण्येय खरेखर पाप ज छे. योगसारमां दोहा ७१ मां योगीन्द्रस्वामी कहे छे-
अहो! केवळीना केडायतो एवा दिगंबर मुनिवरोए तो, महा गजबनां काम कर्यां छे! तेमणे जैनधर्मने टकावी राख्यो छे. आने मूळ पाप जे मिथ्यात्व ते हयात छे. तेथी ते पापी ज छे. हवे आवो कडवो घूंटडो उतारवो कठण पडे, पण भाई! जेमां रागथी लाभ (धर्म) थाय ए वीतराग मार्ग नथी. कह्युं छे के-
भगवान आत्मा सदा जिनस्वरूप-वीतरागस्वरूप ज छे आ सिवाय रागादि अन्य सर्व कर्म छे. जिनप्रवचननुं आ रहस्य छे के रागभाव धर्म नथी, कर्म छे.
प्रश्नः– तो ज्ञानीने पण राग तो होय छे? उत्तरः– हा, ज्ञानीने यथासंभव राग होय छे पण एने रागनी रुचि नथी, एने रागनुं स्वामित्व नथी. अहीं तो जेने रागनी रुचि छे, रागथी भलुं-कल्याण थशे एवी मान्यता छे ते गमे तेवुं आचरण करनारो होवा छतां अज्ञानी छे, पापी छे एम वात छे, केमके तेने वीतरागस्वभावी आत्मानो आश्रय नथी. अहा! जेणे आस्रव-बंधरूप पुण्य-पापना भावने आदरणीय मान्या छे तेणे संवर, निर्जरा अने मोक्षने जाण्या ज नथी, तेणे पोताना आत्माने अने परने भिन्न भिन्न जाण्या ज नथी. भाई! राग होय ते जुदी चीज छे अने रागनी रुचि होवी जुदी चीज छे. अज्ञानी