९२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ स्वरूपमां रमणतारूप शुद्धोपयोग छे अने ते चारित्र छे. ज्यारे शुभाशुभभाव अशुद्धोपयोग छे अने ते अचारित्र छे. अहीं कहे छे-शुद्धोपयोगरूप चारित्रथी बंध छेदाय छे, शुभरागथी नहि. अरे! लोकोने बिचाराओने आनो अभ्यास नथी एटले क्रियाकांडना रागमां ज बधो काळ व्यर्थ गुमावी दे छे! परंतु भाई! सर्वज्ञ परमेश्वर शुं कहे छे अने कई स्थितिए बंध छेदाय छे ते यथार्थ जाणवुं जोईए. ए सिवाय जन्म-मरणना अंत केम आवशे प्रभु?
कहे छे-सम्यग्दर्शन थया पछी पण ज्ञानीने शुभभाव आवे छे परंतु ते बंधनुं ज कारण छे; ज्यारे शुद्धोपयोगरूप जे अंतर्लीनता ते बंधना अभावनुं कारण छे. माटे राग होवा छतां, मने बंध थतो नथी केमके हुं समकिती छुं-एम मानीने जे रागमां स्वच्छंद थई निरर्गल प्रवर्ते छे ते मिथ्याद्रष्टि ज छे. श्री जयचंदजीए बहु सरस वात करी छे.
‘अहीं कोई पूछे के-व्रत-समिति तो शुभकार्य छे, तो पछी व्रत-समिति पाळतां छतां ते जीवने पापी केम कह्यो?’
जोयुं? शुं कह्युं आ? के व्रत-समितिना परिणाम शुभकार्य छे, धर्म नहि हों; तो पछी अहिंसा, सत्य, अदत्त, ब्रह्मचर्य अने अपरिग्रह-एम महाव्रत पाळे, जीवोनी विराधना न थाय एम गमनादि साधे, हितमित वचन बोले, निर्दोष आहार ले इत्यादि शुभकार्य करे तेने पापी केम कह्यो?
तेनुं समाधानः– ‘सिद्धांतमां पाप मिथ्यात्वने ज कह्युं छे; ज्यां सुधी मिथ्यात्व रहे त्यां सुधी शुभ-अशुभ सर्व क्रियाने अध्यात्ममां परमार्थे पाप ज कहेवाय छे.’
जुओ, सिद्धांतमां पाप मिथ्यात्वने ज कह्युं छे-एम एकान्त नाख्युं छे. तो शुं बीजुं (रागादिभाव) पाप नथी? सांभळने भाई! मिथ्यात्व ए ज संसार छे, मिथ्यात्व ए ज आस्रव छे ने मिथ्यात्व ए ज बंधनुं कारण छे. अन्य रागादिभाव (अशुभभाव) पाप तो छे, पण ते अहीं गौण छे. अहीं तो मूळ पाप मिथ्यात्व ज छे एम वात छे. व्रतादि पुण्यना परिणामने धर्म वा धर्मनुं कारण माने ते मिथ्यात्व छे अने ते मिथ्यात्व ज मूळ पाप छे. जुओ, विशेष स्पष्ट करे छे के-ज्यां सुधी मिथ्यात्व रहे त्यां सुधी शुभाशुभ सर्व क्रियाने अध्यात्ममां परमार्थे पाप ज कहेवाय छे. भाई! कोई महाव्रतादिनुं आचरण करे अने ए वडे धर्म थवो माने तो तेने ए बधां शुभाचरण पाप ज छे. आकरी लागे पण चोकखी वात कही छे के अध्यात्ममां मिथ्यात्व सहित शुभक्रियाने परमार्थे पाप ज कहे छे. पण एने कयां विचारवुं छे? बिचारो एम ने एम हांके राखे छे. अहीं तो भगवानना आगममां आवेली आ वात छे के-
१. मिथ्यात्व ए ज मूळ पाप छे.