Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-२०० ] [ ९प आत्मबुद्धिपूर्वक प्रीति-अप्रीति थाय छे, तेने स्व-परनुं ज्ञानश्रद्धान नथी-भेदज्ञान नथी - एम समजवुं’.

जुओ, जेनी विपरीत मान्यता छे के-व्रत ने तप वडे मने धर्म थशे अने भगवाननी भक्ति-वंदना-जात्रा वडे समकित थशे-ते मिथ्याद्रष्टि छे; अने आवुं विपरीत माननार मिथ्याद्रष्टिना अनंतानुबंधी रागने अहीं प्रधानपणे कह्यो छे अर्थात् अनंतानुबंधीना रागने ज अहीं राग कह्यो छे; अस्थिरताना रागने नहि. जुओने! अहीं तो पंडित श्री जयचंदजीए आखुं पानुं भर्युं छे! कहे छे-जेने आवो राग होय छे अर्थात् जेने परद्रव्यमां तथा परद्रव्यथी थता भावोमां आत्मबुद्धिपूर्वक प्रीति-अप्रीति थाय छे... शुं कह्युं? परद्रव्यमां अने परद्रव्यथी थता भावोमां-भले पछी ते देव, गुरु, शास्त्र के स्त्री-पुत्रादि अन्य हो-ते सर्व परद्रव्यमां अने तेनाथी थता पुण्य-पापना भावोमां जेने आत्मबुद्धि थाय छे तेने स्वपरनुं ज्ञानश्रद्धान नथी. अहा! जेने परद्रव्यमां अने परद्रव्यथी थता पुण्य-पापना भावोमां-ते मारा छे अने मने लाभकारी छे-एम प्रीति-अप्रीति थाय छे तेने स्वपरनुं श्रद्धान नथी. जेने रागनो प्रेम छे तेने-आत्मा पोते स्व अने राग पर-एवुं भेदज्ञान नथी. आ देव-गुरु-शास्त्रने पण जे मारां माने तेने स्वपरनुं भेदज्ञान नथी.

हा, पण आ दीकरा-दीकरी तो अमारां खरां ने? उत्तरः– धूळेय तारां नथी, सांभळने! तेओ तेना छे. तेनो आत्मा तेनो छे अने शरीर शरीरनुं छे. शुं ते शरीर आत्मानुं छे? शुं ते शरीर तारुं (पितानुं) छे? शुं तेनो आत्मा तारो (-पितानो) छे? ना. अहाहा...! पोते तो ज्ञायकस्वरूपी आनंदकंद भगवान स्वस्वरूपे छे अने ते सिवाय जे कांई छे ते बधुंय परद्रव्य छे. ते सर्व परद्रव्य अने तेना निमित्तथी थता पुण्यना भावोमां (अहीं मुख्यपणे पुण्य उपर जोर देवुं छे). जेने पोतापणुं छे तेने स्व-परनुं भेदविज्ञान नथी. एम समजवुं.

हवे विशेष कहे छे-‘जीव मुनिपद लई व्रत-समिति पाळे तोपण ज्यां सुधी पर जीवोनी रक्षा, शरीर संबंधी जतनाथी प्रवर्तवुं इत्यादि परद्रव्यनी क्रियाथी तथा परद्रव्यना निमित्ते थता पोताना शुभभावोथी पोतानो मोक्ष माने छे अने पर जीवोनो घात थवो, अयत्नाचाररूपे प्रवर्तवुं इत्यादि परद्रव्यनी क्रियाथी तथा परद्रव्यना निमित्ते थता पोताना अशुभ भावोथी ज पोताने बंध थतो माने छे त्यां सुधी तेने स्वपरनुं ज्ञान थयुं नथी एम जाणवुं.

जुओ, परद्रव्यनी क्रिया जीव करी शकतो नथी. छतां मुनिपद लईने व्रत-समिति पाळतां, हुं पर जीवोनी रक्षा करुं छुं-दया पाळुं छुं तथा पर जीवोनी हिंसा न थाय तेम जतनाथी शरीरादिने प्रवर्तावुं छुं-एम जे परद्रव्यनी क्रियाथी अने परद्रव्यना