९६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ निमित्ते थता व्रत, तप, भक्ति, जात्रा आदिना शुभभावोथी जे पोतानो मोक्ष माने छे तेने भेदविज्ञान ज नथी. भाई! व्रत, तप, उपवास आदि शुभभाव परद्रव्यनो भाव छे. एने पोतानो माने वा एना वडे मोक्ष थवो माने छे तेने स्वपरनुं ज्ञान ज नथी. वळी पर जीवोनी हिंसा थवी अने अयत्नाचारे शरीरनुं प्रवर्तवुं इत्यादि परद्रव्यनी क्रियाथी वा तेना निमित्ते थता अशुभभावथी ज बंध थाय छे एम जे माने छे तेने पण स्वपरनुं भेदविज्ञान नथी. गंभीर वात छे भाई! अहाहा...! ज्यांसुधी अशुभभावथी ज बंध अने शुभभावथी मोक्ष थवो जीव माने छे त्यांसुधी व्रत-समिति पाळे तोय ते स्वपरना भेदज्ञानरहित होवाथी अज्ञानी ज छे. परनी क्रिया अने अशुभभाव ज बंधनुं कारण छे अने शुभक्रिया-व्रतादि भाव मोक्षनुं कारण छे, बंधनुं कारण छे-एम माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. लोको तो राड नाखी जाय एवी आ आकरी वात छे.
अरे! परद्रव्यनी क्रिया तुं कयां करी शके छे भगवान? शुं तुं परनी दया पाळी शके छे? शुं तुं पर जीवनी हिंसा करी शके छे? ना; ए तो जीवनुं आयुष्य होय त्यांसुधी ते जीवे छे अने आयुष्य पुरुं थई जतां मरी जाय छे; एमां तारुं शुं कर्तव्य छे? कांई नहि. बंध अधिकारमां आवे छे के-हुं परने जीवाडुं छुं, परने मारुं छुं, परने सुखी-दुःखी करुं छुं इत्यादि जे माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे, जैन नथी. अरे, जैननी एने खबरेय नथी.
हवे तेनुं कारण समजावे छे-‘कारण के बंध-मोक्ष तो पोताना अशुद्ध तथा शुद्ध भावोथी ज थता हता, शुभाशुभ भावो तो बंधनां ज कारण हता अने परद्रव्य तो निमित्तमात्र ज हतुं, तेमां तेणे विपर्ययरूप मान्युं.’
शुं कहे छे? के बंध तो अशुद्ध परिणामथी थाय छे. शुभ अने अशुभ-बन्ने भाव अशुद्ध परिणाम छे. व्रत, तप, जात्रा आदिना भाव जे शुभ छे ते अशुद्ध छे अने हिंसादिना अशुभभाव पण अशुद्ध छे. आ प्रमाणे शुभाशुभ भाव बन्ने अशुद्ध होवाथी बन्नेय बंधनां ज कारण छे. अशुभनी जेम शुभभाव पण बंधनुं ज कारण छे. भाई व्रत-अव्रतना बन्ने परिणाम बंधनुं ज कारण छे. ज्यारे व्रत-अव्रतरहित-पुण्य- पापरहित आत्मानो जे शुद्धभाव छे ते मोक्षनुं कारण छे. एक शुद्धोपयोग ज मोक्षनुं कारण छे.
जुओ, पुण्य-पापना बन्ने भाव बंधनुं कारण छे अने परद्रव्य तो तेमां निमित्तमात्र ज छे. परंतु अज्ञानी तेमां विपरीत माने छे. हवे आवुं सांभळवा- समजवानी एने कयां नवराश छे? कदाचित् सांभळवा जाय तो कुगुरु एने लूंटी ले छे. अरेरे! वीतराग मार्गनुं सत्यार्थ स्वरूप सांभळवाय न मळे त्यां एने मार्गनी रुचि अने मार्गरूप परिणमन कयारे थाय?