९८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ श्री अमृतचंद्राचार्यनो छे तेमां पण आ ज कह्युं छे. भलो जाणी रागनुं आचरण करे अने माने के-हुं सम्यग्द्रष्टि छुं, पण ए सम्यग्द्रष्टि नथी. समकिती तो रागथी विरत्त थवानी भावनावाळो रागने रोग समान ज जाणे छे. समकिती रागना आचरणमां धर्म मानतो नथी. हवे कहे छे-
(राग-रोगनी) ‘पीडा सही शकाती नथी तेथी तेमनो ईलाज करवारूपे प्रवर्ते छे तोपण तेने तेमना प्रत्ये राग कही शकातो नथी; कारण के जेने रोग माने तेना प्रत्ये राग केवो? ते तेने मटाडवानो ज उपाय करे छे अने ते मटवुं पण पोताना ज ज्ञानपरिणामरूप परिणमनथी माने छे.’
समकितीने विषयवासना पण थई आवे छे अने तेना ईलाजरूपे ते विषयभोगमां पण जोडाय छे, पण तेने एनी रुचि नथी. ते तो एने रोग जाणे छे तो एनी रुचि केम होय? काळो नाग देखी जेम कोई भागे तेम ते एनाथी-अशुभरागथी भागवा मागे छे. ते तेने मटाडवानो ज उपाय करे छे. ते तो अशुभरागनी जेम शुभरागने पण मटाडवानो ज उपाय करे छे. वळी सर्व रागनुं मटवुं ते पोताना ज ज्ञानपरिणामरूप परिणमनथी माने छे. शुभ परिणाम अशुभने मटाडवानुं साधन छे एम नहि पण पोताना निर्मळ ज्ञानमय वीतरागी परिणमनथी ज सर्व राग मटवायोग्य छे एम ते यथार्थ माने छे. अज्ञानीने जेम विषयभोगमां मजा आवे छे तेम ज्ञानीने विषयभोगमां के शुभरागमां मजा नथी. ते तो सर्व रागने मटाडवानो ज उपाय करे छे अने शुद्ध चैतन्यना आश्रये क्रमशः मटाडतो जाय छे. कहे छे-‘आ रीते सम्यग्द्रष्टिने राग नथी. आ प्रमाणे परमार्थ अध्यात्मद्रष्टिथी अहीं व्याख्यान जाणवुं.’
हवे कहे छे-‘अहीं मिथ्यात्वसहित रागने ज राग कह्यो छे.’ शुं कह्युं? के कोई व्रत, तप, भक्ति, पूजा इत्यादि चरणानुयोग अनुसार शुभाचरण करतो होय पण जो एने ए शुभरागमां रुचि छे, आत्मबुद्धि छे, वा एनाथी मारुं भलुं थशे एवी मान्यता छे तो ते मिथ्याद्रष्टि छे अने एना मिथ्यात्वसहितना रागने ज राग कह्यो छे. भगवान आत्मा त्रिकाळ वीतरागस्वरूप छे. हवे जेनी रुचिमां वीतरागस्वरूप आत्मानुं पोसाण नथी पण रागनुं अने परद्रव्यनुं ज पोसाण छे अर्थात् राग भलो छे-एम रागनुं ज जेने पोसाण छे ते मिथ्याद्रष्टि छे अने एना रागने ज अहीं राग कह्यो छे.
प्रश्नः– परंतु शुभभावने अशुभभावनी अपेक्षाए तो ठीक कहेवाय ने? उत्तरः– पण ए कयारे? समकित थाय त्यारे. तोपण बंधनी अपेक्षाए तो बन्ने निश्चयथी बंधना ज कारणरूप छे. समकितीने व्यवहारनी अपेक्षाए तीव्र कषायनी सरखामणीए मंदकषायने ठीक-भलो कहेवाय छे, पण छे तो निश्चयथी बंधनुं ज कारण. जेणे मंदकषायने पण निश्चये बंधनुं कारण जाण्युं छे एवा समकितीने मंदकषाय-शुभराग उपचारथी भलो कहेवामां आव्यो छे.