समयसार गाथा-२०० ] [ ९९
भगवान आत्मा ज्ञानानंदस्वरूपे सदाय ज्ञायकभावे परमात्मस्वरूपे अंदर विराजी रह्यो छे. तेनो जेमने प्रेम नथी, तेनो जेमने आश्रय नथी, अवलंबन नथी अने जेओ एकांते रागनुं अवलंबन लईने बेठा छे तेओ, भले व्रत पाळे, तपश्चर्या करे, मुनिपणानो आचार पाळे तोपण मिथ्याद्रष्टि ज छे. भाई! आ तो भवना अभावनी वात छे. जेनाथी भव मळे ते भाव आत्मानो नथी केमके भगवान आत्मा भव अने भवना कारणना अभावस्वरूप छे. तेथी अहीं कह्युं के मिथ्यात्वसहित जे अनंतानुबंधीनो राग छे तेने ज अहीं राग कह्यो छे. रागनी रुचि सहित जे राग छे ते मिथ्यात्वसहित छे अने तेने ज अहीं राग कह्यो छे. चरणानुयोगनी वातो घणी सांभळी होय एटले आवुं आकरुं लागे पण शुं थाय? आवी ज वस्तुस्थिति छे.
प्रश्नः– तो शास्त्रमां आवे छे के निश्चयसहित व्यवहारनो उपदेश करवो वा निश्चय न समजे तेने व्यवहारनो उपदेश करवो. आ केवी रीते छे?
उत्तरः– भाई! ए तो उपदेश शैलीमां राग घटाडवानी अपेक्षाए वात छे. परंतु अहीं तो भवना अभावनी वात छे. चरणानुयोगमां तो त्यां सुधी आवे के तीव्र कषाय घटाडवा मंद कषाय करवो. परंतु ए तो व्यवहारनुं वचन छे ज्यारे अहीं परमार्थनी वात छे. वळी चारेय अनुयोगमां कषाय मटाडवानुं ज प्रयोजन छे एम समजवुं. चारे अनुयोगनुं तात्पर्य एक मात्र वीतरागता ज छे, अने ते स्वना आश्रये ज प्रगट थाय छे. तथापि कोई रागनी रुचि सहित रागना-परद्रव्यना आश्रये ज परिणमे छे तो ते मिथ्याद्रष्टि ज छे अने तेना रागने ज अहीं राग कह्यो छे. समजाणुं कांई?
मिथ्यात्वसहित रागने ज अहीं राग कह्यो छे. व्रतादिना रागने ज अने परद्रव्यने ज ज्ञेय बनावीने तेमां ज जेणे चिद्घन परमात्मस्वरूप भगवान ज्ञायकमूर्तिने रोकी राख्यो छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. तेना रागने ज अहीं राग कह्यो छे. आकरी वात प्रभु! दुनिया साथे मेळ मेळववो मुश्केल छे, पण शुं थाय?
हवे कहे छे-‘मिथ्यात्व विना चारित्रमोहसंबंधी उदयना परिणामने राग कह्यो नथी; माटे सम्यग्द्रष्टिने ज्ञानवैराग्यशक्ति अवश्य होय ज छे.’
शुं कह्युं? समकितीने चारित्रमोहनो किंचित्-जरी राग छे तेने अहीं राग कह्यो नथी. किंचित्-जरी एटले? ९६ हजार स्त्रीना विषयनी वासनावाळो राग-चारित्रमोहनो अस्थिरतानो राग किंचित् छे, जरी छे; कारण के ते रागना फळमां अल्प स्थिति अने अल्प अनुभाग पडे छे. तेथी ते रागने गणवामां आव्यो नथी. अहाहा...! जे परमपारिणामिकभावस्वरूप सहजानंदमय भगवान ज्ञायकमूर्तिना पडखे चढयो अने तेनो अंतःस्पर्श करी वीतराग समकितने प्राप्त थयो तेने हजी राग तो छे पण ते रागने अहीं गणवामां आव्यो नथी अर्थात् तेने गौण गणी काढी नाख्यो छे. ज्यारे जे