१०० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ भगवान ज्ञायकना पडखे चढयो ज नथी अने जे रागना ज पडखे चढेलो छे तेना रागने ज राग कह्यो छे.
अरेरे! अनादिथी ८४ना अवतारमां अशरणदशामां पडेला एणे परम शरणभूत पोतानी त्रिकाळ ज्ञानानंदमय चीज कोई दि’ जोई नहि! जेनुं शरण लेतां शरण मळे, आनंद थाय एनुं शरण लीधुं नहि अने व्रत, तप, भक्ति इत्यादि अशरणरूप भावोना शरणे जतां ते मिथ्याद्रष्टि ज रह्यो. तेनुं वीर्य शुभाशुभ रागमां ज एकत्वपणे उल्लसित थतुं रह्युं केमके तेने रागमां मीठाश हती. अहीं आवा अज्ञानीना रागने ज राग कह्यो छे केमके ते दीर्घ संसारनुं कारण छे. ज्यारे जे स्वरूपना आश्रये-शरणमां रहेलो छे एवा समकितीने भले अस्थिरतानो किंचित् राग होय पण तेने अहीं गण्यो नथी केमके तेनुं वीर्य रागमां उल्लसित-प्रफुल्लित नथी अने ते दीर्घ संसारनुं कारण नथी. आवी व्याख्या छे!
एकलो आनंदकंदस्वरूप प्रभु आत्मा परमात्मा छे. भाई! भगवानने जे परमात्मपर्याय प्रगट थई ते कयांथी थई? अंदर जे अनंती त्रिकाळी परमात्मशक्ति पडेली छे ते प्रगट थई छे. आवी परमात्मशक्तिनी-ज्ञानानंदस्वभावनी जेने रुचि थई छे अने रागनी रुचि छूटी गई छे ते ते समकिती धर्मात्मा छे. अहीं कहे छे-आवा धर्मात्माना चारित्रमोहसंबंधी उदयना परिणामने राग कह्यो नथी; माटे सम्यग्द्रष्टिने ज्ञान-वैराग्यशक्ति अवश्य होय ज छे. अहाहा...! जेने अनाकुळ आनंदनो स्वाद आव्यो छे, जेने पोताना त्रिकाळी परमात्माना भेटा थया छे तेने स्वरूपनी पूर्णतानी प्रतीतिनुं ज्ञान अने रागना निवर्तनरूप वैराग्य जरूर होय ज छे. धर्मीने निराकुळ आनंदना स्वादनी रुचि खसती नथी अने तेने जे राग आवे तेनी रुचि थती नथी. तेने तो राग झेर जेवो लागे छे. जेने रागमां होंश-मझा आवे छे ए तो मिथ्याद्रष्टि छे. आवो मार्ग छे बापा! बहु झीणो मार्ग भाई! दुनिया तो कयांय (रागमां) रझळे-रखडे छे अने वस्तु तो कयांय रही गई छे! परंतु आनंदनुं निधान भगवान आत्मानो आश्रय लीधा विना जे कांई व्रत, तप, भक्ति आदि करवामां आवे छे ते बधाय रागादिनुं फळ संसार ज छे. आवी वात छे.
धर्मीने-सम्यग्द्रष्टिने अर्थात् सम्यक् नाम सत्यद्रष्टिवंतने ज्ञान अने वैराग्य होय ज छे. सत्य एटले त्रिकाळी नित्यानंदस्वरूप भगवान आत्मानी जेने द्रष्टि थई छे तेने निमित्तनी, रागनी के एक समयनी पर्यायनी द्रष्टि रहेती नथी. तेथी तेने स्वस्वरूपनुं ज्ञान अने राग-अशुद्धिना अभावरूप वैराग्य अवश्य होय ज छे. जुओ, छ खंडना राज्यना वैभवमां समकिती चक्रवर्ती पडयो होय तोपण तेने ज्ञान अने वैराग्य निरंतर एकीसाथे होय ज छे. ऋषभदेव भगवानना पुत्र भरत चक्रवर्ती हता. तेओ क्षायिक समकिती हता. तेमने ९६ करोड पायदळ, ९६ करोड गाम अने ९६ हजार राणीओ