समयसार गाथा-२०० ] [ १०१ हती. छतां ‘हुं त्रिकाळी आनंदस्वरूप भगवान छुं’-एवी द्रष्टि, एवुं ज्ञान अने रागना अभावरूप वैराग्य तेमने निरंतर हतो.
पण आमां करवुं शुं? शुं करवुं एनी वात तो कांई आवती नथी. अरे भाई! अनादिकाळथी तें बधुं ऊंधुं ज कर्या कर्युं छे. व्रत पाळ्यां, दान कर्यां, भक्ति करी, भगवाननी पूजा करी; अरे! समोसरणमां बिराजमान साक्षात् अर्हंत परमात्मानी मणिरत्नना फूलथी अनंतवार पूजा करी; पण तेथी शुं? ए तो बधो राग छे. ए रागथी लाभ मान्यानुं तने मिथ्यादर्शन थयुं छे. समकितीने तो रागना अभावनी-वैराग्यनी भावना निरंतर होय छे केमके तेने आत्मानी रुचि निरंतर रहे छे. आत्मानी रुचि अने तेना आश्रये रागनो अभाव ए ज निरंतर करवा योग्य कार्य छे.
हवे कहे छे-‘मिथ्यात्व सहित राग सम्यग्द्रष्टिने होतो नथी अने मिथ्यात्व सहित राग होय ते सम्यग्द्रष्टि नथी.’
जुओ, जेने सम्यग्दर्शन थयुं छे अर्थात् जेने ज्ञानानंदस्वभावी आत्माना आनंदनो स्वाद आव्यो छे ते सम्यग्द्रष्टिने मिथ्यात्व सहित राग होतो नथी. भाई! अंदर एकला ज्ञान अने आनंदनां निधान भर्यां छे. भगवान आत्मा ज्ञान अने आनंदनुं अखूट निधान छे. ते परिपूर्ण परमात्मशक्तिना सामर्थ्यथी भरेलुं छे. आवा आत्मानी जेने अंतरंगमां द्रष्टि थई ते सम्यग्द्रष्टि छे, अने तेने राग गणवामां आव्यो नथी केमके तेने मिथ्यात्व सहित राग होतो नथी. जो मिथ्यात्व सहित राग होय तो ते सम्यग्द्रष्टि ज नथी. शुं रागमां रुचिय होय अने सम्यग्दर्शन पण होय? असंभव. रागनी रुचि अने सम्यग्दर्शन बे साथे होई शकतां नथी. जेने पोसाणमां राग छे तेने वीतरागस्वभाव पोसातो ज नथी. अने जेने वीतरागस्वभावी आनंदकंद प्रभु आत्मा पोसाणो तेने राग पोसाय ज नहि.
तो शुं समकितीने राग होतो ज नथी? एम कयां वात छे? समकितीने यथासंभव राग तो होय छे पण तेने रागनुं पोसाण नथी. ते रागने झेर समान ज माने छे. समजाणुं कांई...? कोईने वळी थाय के शुं आवी व्याख्या अने आवो मार्ग हशे? हा, भाई! वीतरागमार्ग आवो अलौकिक छे अने आवी ज तेनी व्याख्या छे. आ तो दिव्यध्वनिमां भगवाने पीटेलो ढंढेरो छे के समकितीने मिथ्यात्व सहित राग नहि अने मिथ्यात्व सहित राग छे तेने समकित नहि. गजब वात छे! मिथ्यात्व सहित रागने ज अहीं मुख्यपणे राग गणवामां आव्यो छे. समजाणुं कांई...?
हवे कहे छे-‘आवा (मिथ्याद्रष्टिना अने सम्यग्द्रष्टिना भावोना) तफावतने सम्यग्द्रष्टि ज जाणे छे.’ मतलब के अज्ञानीने आ तफावतनी खबर ज नथी. अज्ञानी तो बस