१०२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ खावुं, पीवुं, रळवुं, कमावुं अने विषयोना भोग भोगववा इत्यादि पापकार्योमां ज तद्रूप थई पडयो छे अने कदाचित् निवृत्ति लईने दया, दान, भक्ति, व्रत, पूजा इत्यादि करे तोय ए बधो एकत्वपणा सहित राग ज छे. ज्ञानीने आवो राग (एकत्वबुद्धिनो राग) होतो नथी केमके आवो तफावत सम्यग्द्रष्टि जाणे छे.
अज्ञानी हजारो राणीओ छोडीने नग्न दिगंबर मुद्रा धारे, जंगलमां रहे, कोई चामडी उतारीने खार छांटे तोय क्रोध न करे-एवां व्रत पाळे तोपण तेनी द्रष्टि द्रव्यस्वभाव उपर नथी. तेने द्रव्यस्वभावनी खबर ज नथी. ए तो जे रागनी क्रिया छे ते हुं छुं अने ए वडे मारुं भलुं छे एम मिथ्या माने छे. अज्ञानीने भले गमे तेवो राग मंद होय तोपण ते मिथ्यात्व सहित ज छे अने तेने ज राग गण्यो छे. ज्ञानी आ भेदने यथार्थ जाणे छे. ज्ञानी तो जाणे छे के वीतराग परमेश्वर भगवान जिनेन्द्रदेवनो वीतरागी मार्ग एक मात्र वीतरागस्वभावना आश्रये ज प्रगट थाय छे, रागथी नहि.
मिथ्याद्रष्टि अने सम्यग्द्रष्टिना रागनो भेद एक ज्ञानी ज जाणे छे, अज्ञानी नहि. हवे कहे छे-‘मिथ्याद्रष्टिनो अध्यात्मशास्त्रमां प्रथम तो प्रवेश नथी अने जो प्रवेश करे तो विपरीत समजे छे-व्यवहारने सर्वथा छोडी भ्रष्ट थाय छे अथवा तो निश्चयने सारी रीते जाण्या विना व्यवहारथी ज मोक्ष माने छे, परमार्थ तत्त्वमां मूढ रहे छे.’
शुं कह्युं आ? के त्रणलोकना नाथ जिनेन्द्रदेवे परमानंदस्वरूप भगवान आत्माना स्वरूपना कथनवाळां अध्यात्मशास्त्र कह्यां छे. ते अध्यात्मशास्त्रमां रागनी रुचिवाळा जीवनो प्रवेश ज नथी. अहा! जे रागना फंदमां फसाया छे ते अज्ञानी जीवो भगवाननां कहेलां शुद्धात्मानी कथनीवाळां अध्यात्मशास्त्रोमां प्रवेश ज करी शकता नथी. वळी कदाचित् प्रवेश करे तो विपरीत समजे छे. ते व्यवहारने सर्वथा छोडी भ्रष्ट थई जाय छे. मतलब के ते शुभरागनी क्रियाओ उथापीने अशुभ रागमां चाल्यो जाय छे. अथवा तो ते निश्चयने सारी रीते एटले यथार्थ जाण्या विना अर्थात् पूर्णानंदस्वरूप ज्ञायकस्वरूप भगवान आत्मानो आश्रय कर्या विना मात्र व्यवहारथी-शुभरागथी ज मोक्ष माने छे. ‘निश्चयने सारी रीते जाण्या विना’-एम शब्द छे ने? मतलब के निश्चयस्वरूप भगवान आत्माना आश्रयने प्राप्त थया विना अज्ञानी व्रत, तप, दया, दान, भक्ति, पूजा इत्यादिना शुभरागथी मोक्ष थवो माने छे. पण भाई! एवो शुभराग तो तुं अनंत वार करीने नवमी ग्रैवेयक गयो छे. एथी शुं? छहढालामां आवे छे ने के-
अहीं एम कहे छे के निश्चय नाम सत्य सिद्धस्वरूप ‘सिद्ध समान सदा पद मेरो’-एवी जे पोतानी चीज छे तेने जाण्या विना अज्ञानी एकला रागमां ऊभो