समयसार गाथा-२०० ] [ १०३ रहीने पोताने आत्मज्ञान थयुं छे एम माने छे. दया, दान, व्रत आदिना रागथी ज अज्ञानी धर्म थवो माने छे पण ते एनी विपरीतता छे. बहु आकरी वात छे भाई! जेनाथी पुण्यबंध थाय एनाथी मुक्ति वा मोक्ष केम थाय? न ज थाय. तथापि अज्ञानी शुभभावथी मोक्ष थवो माने छे माटे ते परमार्थ तत्त्वमां मूढ रहे छे. परम पदार्थ जे भगवान आत्मा ते परमार्थ तत्त्व छे. आ कोईनी सेवा करवी के दया पाळवी ते परमार्थ छे एम नहि. ए तो बधो राग छे, अपरमार्थ छे. भगवान सर्वज्ञदेवे अंदर जे सच्चिदानंदस्वरूप त्रिकाळी भगवान आत्मा जोयो छे ते परमार्थ छे. भगवान सर्वज्ञदेवनी स्तुतिमां आवे छे ने के-
जुओ, सीमंधर भगवान अत्यारे महाविदेहमां बिराजे छे; साक्षात् भगवान त्रणलोकना नाथ अरिहंतपदे बिराजे छे. महावीर आदि भगवंतो तो ‘णमो सिद्धाणं’ सिद्धपदमां छे. तेओ शरीररहित थई गया छे. ज्यारे सीमंधर भगवान तो समोसरणमां बिराजे छे; तेमने शरीर छे, वाणी छे, प०० धनुष्यनो देह छे, क्रोडपूर्वनुं आयुष्य छे. महाविदेहक्षेत्रमां अत्यारे लाखो-क्रोडो देवताओ तेमनी सभामां धर्म सांभळे छे. आवा भगवाननी स्तुति करतां स्तुतिकार कहे छे-‘प्रभु जाणग रीति... लाल’ मतलब के-हे नाथ! आप सौने देखो छो तो आपनी जाणवानी रीति शुं छे? आप अमारा आत्माने केवो देखो छो? तो कहे छे-‘निज सत्ताए शुद्ध’-पोताना होवापणे शुद्ध पवित्र एक ज्ञानानंदस्वरूपे ज जुओ छो. भगवान! आप आखाय जगतने होवापणे शुद्ध देखो छो. आ जे ‘निज सत्ताए शुद्ध’ वस्तुने भगवान जुए छे ते परमार्थ तत्त्व छे, आत्मतत्त्व छे. पुण्य-पापना रागादि विकारना परिणाम कांई आत्मतत्त्व नथी. भगवान तेने आत्मतत्त्वरूपे जोता नथी, भगवान तो एने आत्मतत्त्वथी भिन्न ज जुए छे. समजाणुं कांई...?
नव तत्त्वमां दया, दान, व्रत, भक्ति आदिना परिणाम पुण्य छे अने हिंसा, जूठ आदिना परिणाम पाप छे. आ बन्नेथी भिन्न भगवान आत्मा ज्ञायकतत्त्व छे अने ते परमार्थ छे. जेम भगवाने प्रत्येक आत्माने ‘निजसत्ताए शुद्ध’ जोयो छे तेम जेनी द्रष्टिमां शुद्ध ज्ञायक जणायो ते सम्यग्द्रष्टि छे. अरे! हजु सम्यग्दर्शननां ठेकाणां न मळे अने लोको मुनिपणुं लई ले अने व्रतादि पाळे पण ए तो बधां थोथेथोथां छे. सम्यग्दर्शन धर्मनी मूळ चीज छे. अरे भाई! सम्यग्दर्शन विना तें अनंतकाळमां अनंत वार मुनिव्रत पाळ्यां, पण एथी शुं? एमां कयां धर्म छे ते सुख थाय?
अहीं कहे छे-शुभराग वडे मोक्ष थाय एवी विपरीत मान्यता वडे अज्ञानी परमार्थतत्त्वमां मूढ रहे छे. परंतु जो कोई विरल जीव यथार्थ स्याद्वादन्यायथी