१०४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ सत्यार्थ समजी जाय तो तेने अवश्य सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय ज छे-ते अवश्य सम्यग्द्रष्टि बनी जाय छे.’
जोयुं? शुं कह्युं आ? स्याद्वादन्यायथी सत्यार्थ समजवावाळा जीव कोईक विरल ज होय छे. माटे बीजा केम समजता नथी एवी अधीराई छोडीने स्वरूपमां ज सावधान रहेवुं, बीजानी चिंता न करवी. ‘स्याद्वाद-न्यायथी सत्यार्थ समजी जाय’ -एम कह्युं मतलब के वस्तु द्रव्यपर्यायस्वरूप छे त्यां द्रव्य पण छे, पर्याय पण छे परंतु द्रव्य पर्यायमां नथी, पर्याय द्रव्यमां नथी एम यथार्थ समजवुं जोईए. शुद्ध आत्मद्रव्यमां राग नथी अने रागमां शुद्ध आत्मा नथी-आवी वात छे.
भाई! भगवाने नव तत्त्व कह्यां छे ने? ए नव तत्त्व कयारे सिद्ध थाय? एकमां बीजाने भेळव्या विना प्रत्येकने भिन्न भिन्न माने त्यारे सिद्ध थाय. शरीरादि अजीवमां जीव नहि अने जीवमां शरीरादि अजीव नहि एम यथार्थ समजवुं जोईए. वळी जेम अजीवथी जीव भिन्न छे तेम दया, दान आदि पुण्यतत्त्वथी अने हिंसा, जूठ, चोरी, विषयवासना अने क्रोधादि पापतत्त्वथी शुद्ध ज्ञायकतत्त्व भगवान आत्मा भिन्न छे. अहो! भगवाननी दिव्यध्वनिमां आवी अलौकिक वात आवी छे. आवी वात सर्वज्ञदेवनी वाणी सिवाय बीजे कयांय होई शके नहि.
अहा! कहे छे-जो कोई विरल जीव स्याद्वादन्यायथी सत्यार्थ समजी जाय तो ते अवश्य सम्यग्द्रष्टि थई जाय छे. स्याद्वादन्यायथी एटले शुं? के राग छे पण ते शुद्ध द्रव्यमां नथी, पर्याय पर्यायपणे छे पण ते त्रिकाळी द्रव्यमां नथी. एक समयनी पर्यायमां त्रिकाळी द्रव्य भगवान आत्मा आवी जतो नथी. कोईने वळी थाय के आवी व्याख्या? एना करतां तो व्रत करो, दया पाळो, ब्रह्मचर्य पाळो, तप करो, भक्ति करो इत्यादि कहो तो सहेलुं समजाय तो खरुं! अरे भाई! ए तो बधी रागनी क्रियाओ छे. एमां कयां भगवान आत्मा छे? एमां कयां धर्म छे? धर्म तो वीतरागता छे अने ते शुद्ध आत्मद्रव्यना-स्वना आश्रये ज प्रगट थाय छे.
जो कोई स्याद्वादन्यायथी सत्यार्थ समजी जाय तो तेने सम्यक्त्व थाय ज छे. जुओ, ‘थाय ज छे’-एम कह्युं छे. अहाहा...! राग हो पण रागमां आत्मा नहि अने आत्मामां राग नहि आवुं अनेकान्तस्वरूप जाणीने जे अंतरसन्मुख थाय छे तेने समकित अवश्य थाय ज छे. भगवान पूर्णानंदना नाथमां कयां राग छे? अने रागमां ते पूर्णानंदनो नाथ प्रभु आत्मा कयां रह्यो छे? आवुं सत्यार्थ जाणी जे स्वरूपमां-शुद्ध त्रिकाळी द्रव्यमां एकाग्र थाय छे तेने सम्यक्त्व थाय ज छे अर्थात् ते अवश्य सम्यग्द्रष्टि बनी जाय छे. आ समकित ते धर्मनुं पहेलुं पगथियुं छे, चारित्र तो ते पछीनी वात छे. भाई! मोक्षमार्गनो आवो ज क्रम छे, सर्वज्ञ भगवाने एवो ज क्रम जाण्यो अने कह्यो छे.