Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-२०० ] [ १०प

प्रश्नः– सर्वज्ञ छे ए तो मात्र जाणे छे. तेने वळी क्रमबद्ध के अक्रम (क्रमरहित) साथे शुं संबंध छे? तेओ तो क्रमे थाय तेने तेम जाणे अने अक्रमे थाय तेने अक्रमे जाणे.

समाधानः– भाई! तारी समजमां आखी भूल छे. खरेखर तो एक समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने युगपत् जाणे एवा सर्वज्ञनो ज्यां निर्णय करवा जाय त्यां बधुं ज व्यवस्थित क्रमबद्ध छे एम सिद्ध थई जाय छे. छये द्रव्यमां एक पछी एक एम धारावाही पर्याय थाय छे जेने आयतसमुदाय कहे छे. त्यां प्रतिसमय, द्रव्यमां जे पर्याय थवानी होय छे ते ज अंदरथी आवे छे-थाय छे. आवो जे यथार्थ निर्णय करे छे ते सम्यग्द्रष्टि छे. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा (गाथा ३२१ थी ३२३) मां आवे छे के भगवान सर्वज्ञदेवे जे काळे जे द्रव्यमां ज्यां जेम परिणमन थवानुं जाण्युं छे ते काळे ते द्रव्यमां त्यां तेम ज परिणमन थाय छे. आवुं जे यथार्थ श्रद्धान करे छे ते समकिती छे अने एमां जे शंका करे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. भाई! आ तो परम शांतिनो-आनंदनो मार्ग छे बापु! पण ते परम शांति कयारे थाय? के बधुं ज क्रमबद्ध छे एम यथार्थ निर्णय करी स्वभाव-सन्मुख थाय त्यारे. सर्वज्ञस्वभावी भगवान आत्मानो निश्चय थया विना सर्वज्ञ पर्यायनो निर्णय थई शके नहि. अर्थात् ज्यां सर्वज्ञनो यथार्थ निर्णय करवा जाय त्यां ज्ञानस्वभावी निज आत्मद्रव्यनो निर्णय थई जाय छे. आवो मार्ग छे.

अहा! जे काळे जे पर्याय क्रमबद्ध थवानी छे ते थाय छे, ज्ञान तो तेने जाणे ज छे. भाई! आ ज सर्वज्ञना निर्णयनुं तात्पर्य छे. परंतु एम न मानता अमे आम करीए तो आम थाय ने कर्मनो उदय आवे तेनी उदीरणा करीए इत्यादि प्रकारे जे माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. अरे भाई! उदीरणा आदि बधी ज वात क्रमबद्ध ज थाय छे. कशुंय आघु- पाछुं थाय, क्रमरहित थाय एवुं वस्तुनुं स्वरूप ज नथी. हुं आम करी दउं अने तेम करी दउं ए तो तारी खोटी भ्रमणा ज छे. समजाणुं कांई...?

अहा! जेने सर्वज्ञनो निर्णय थाय छे तेने भेगो क्रमबद्धनो निर्णय थई ज जाय छे अने तेने आवो निर्णय स्वभावसन्मुख पुरुषार्थ वडे ज थतो होय छे. आवो निर्णय थतां व्यवहार पहेलो अने निश्चय पछी एम रहेतुं ज नथी. वळी निमित्तथी उपादानमां कांई थाय छे ए वात पण रहेती नथी. अरे भाई! आ अवसरे जो तुं आ नहि समजे तो कयारे समजीश? (आवो अवसर वीती गया पछी अनंतकाळे ते मळवो दुर्लभ छे).

भगवान! तुं सर्वज्ञस्वभावी वस्तु पोते ज छो. भाई! तुं अंतर्द्रष्टि करी पोताना सर्वज्ञस्वभावमां एकाग्र था. एम करतां तने पोताना ज्ञस्वभावनो-सर्वज्ञस्वभावनो-