समयसार गाथा-२०० ] [ १०७ जाणे छे तेम जगतनी अवस्था प्रतिसमय क्रमबद्ध थया करे छे. अहो! अद्भुत वस्तुनुं स्वरूप अने अद्भुत सर्वज्ञदेव!! वस्तु क्रमबद्ध परिणमे अने भगवान तेने मात्र जाणे. गजब वात छे भाई! अहो! आवो यथार्थ निर्णय ज्यां करवा जाय छे त्यां हुं पोते ज्ञायक ज छुं, सर्वज्ञस्वभावी जाणनार-देखनार मात्र छुं, जे थाय तेने मात्र जाणुं-एवो निर्णय थई जाय छे. अहाहा...! आवो निर्णय थतां ‘पर्यायने पण करुं एवुंय मारामां नथी’-एवी निश्चय द्रष्टि थई जाय छे. (शुद्ध) पर्याय स्वभावना पुरुषार्थपूर्वक थाय छे ए अपेक्षाए करवापणुं छे, परंतु पर्यायने आम करुं के तेम करुं वा तेमां आम फेरफार करी दउं एम त्यां रहेतुं नथी. भाई! आवो सूक्ष्म भगवाननो मार्ग छे. बापु! जन्म- मरणरहित थवानी द्रष्टि कोई अलौकिक छे! अरे! अज्ञानीने एनी खबरे नथी!