समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १११
अहाहा...! जेम सूर्यनां किरण सफेद उज्ज्वळ प्रकाशमय होय पण कोलसा जेवां काळां न होय तेम चैतन्यसूर्य प्रभु आत्मानुं किरण (पर्याय) निर्मळ चैतन्यमय होय पण आंधळा (अंधारिया) रागमय न होय. भाई! राग छे ते चाहे व्रतनो हो, तपनो हो, भक्तिनो हो के दया-दाननो हो, ते अंधकारमय-अचेतन-अज्ञानमय छे. तेमां जाणपणानो अभाव छे ने? जेम सम्यग्दर्शन-ज्ञानमां चैतन्यज्योतिनुं किरण छे तेम रागमां ज्ञायकस्वरूप भगवान आत्मानुं किरण नथी तेथी राग बधोय अज्ञानमय छे.
अरेरे! लोको बिचारा बहारमां फसाई गया छे! भाई! आ अवतार (मनुष्य भव) व्यर्थ चाल्यो जाय छे हों. बापु! आ देहनी स्थिति तो निश्चित ज छे; अर्थात् कया समये देह छूटी जशे ते निश्चित ज छे. तुं जाणे के हुं मोटो थतो जाउं छुं, वधतो जाउं छुं, पण भाई! तुं तो वास्तवमां मृत्युनी समीप ज जाय छे. (माटे जन्म-मरणनो अंत लावनारुं आ तत्त्वज्ञान समजी ले).
प्रश्नः– हा; पण आ पैसा वधे, कुटुंब-परिवार वधे तो एटलुं तो वध्यो के नहि? उत्तरः– धूळमांय वध्यो नथी सांभळने. ए पैसा-लक्ष्मी अने कुटुंब-परिवार ए बधां कयां तारामां छे? ए तो प्रगट भिन्न चीज छे. भगवान! तुं अनंत अनंत गुणोनी समृद्धिथी भरेलो ज्ञानानंदस्वभावी स्वरूपलक्ष्मीनो स्वामी छो. आवी निज चैतन्यलक्ष्मीनो विश्वास-प्रतीति अने एना अनुभव विना जेने मात्र रागनी भावना छे ते चाहे मोटो राजा हो, मोटो अबजोपति शेठ हो के मोटो देव हो, ते रांक भिखारी ज छे. अहा! जेने मात्र रागनी भावना छे ते पोतानी चैतन्यलक्ष्मीथी रहित एवा चार गतिमां रखडनारा बिचारा भिखारा छे. समजाणुं कांई...? अहा! भाषा तो जुओ! गाथा ज एवी छे ने!
कहे छे-जेने रागादि अज्ञानमय भावोनो लेशमात्र पण सद्भाव छे अर्थात् अंशमात्र रागनी पण जेने अंतरमां रुचि छे ते चाहे श्रुतकेवळी जेवो हो तोपण अज्ञानी छे. गजब वात छे भाई! जुओ, अहीं मिथ्यात्वसहित अनंतानुबंधी रागने राग गणवामां आव्यो छे. भाई! आ तो लोजीकथी-न्यायथी वात छे. पण माणसने ज्यां समजवानी दरकार ज न होय तो शुं थाय? भाई! त्रणलोकना नाथ अरिहंत परमात्मानी दिव्यध्वनिमां न्यायथी मार्ग सिद्ध करेलो छे. कहे छे-जेने रागादि भावोना एटले पुण्य-पापना भावोना लेशमात्रनो पण सद्भाव छे ते, भले तेने अगियार अंगनी लब्धि प्रगट थई होय तोपण अज्ञानी छे.
जुओ, भगवाने कहेला आचारांगमां अढार हजार पद छे, अने एक एक पदमां एकावन करोड जाजेरा श्लोक छे. आवां आवां ११ अंग भण्यो होय तोपण ज्ञानमय भावना अभावने लीधे ते अज्ञानी छे. अहा! जाणपणुं तो एवुं अजब-गजब होय