Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ के लाखो माणसोने खुशी-खुशी करी दे. पण ते शुं कामनुं? केमके बधुं अज्ञान छे ने? तेणे आत्माने कयां जाण्यो छे? रागने पोतानुं स्वरूप माननारो ते आत्माने- पोताने जाणतो नथी.

‘सव्वागमधरोवि’-सर्व आगमधर पण-एवो पाठ छे ने? मतलब के ते भगवाने कहेलां आगमोने भणेलो छे, अज्ञानीनां कहेलां नहि. अज्ञानीनां आगम तो कोई वस्तु ज नथी, केमके तेमां तत्त्वनुं यथार्थ स्वरूप ज नथी. अहीं कहे छे-वीतराग परमेश्वर सर्वज्ञ परमात्मानी दिव्यध्वनिमां आवेलां एवां जे आगम तेनुं क्षयोपशम ज्ञान कर्युं छे तोपण जेने रागनी हयाती छे अर्थात् ‘राग ते हुं छुं अने एनाथी मने लाभ छे’-एम जे माने छे ते सम्यग्द्रष्टि नथी, अज्ञानी छे. आवी भारे आकरी वात प्रभु! भगवान जिनेश्वरदेवनो मार्ग बहु झीणो छे भाई!

कहे छे-जे भगवाननी भक्तिथी मुक्ति थवानुं माने छे ते रागनी हयातीने माने छे पण आत्माने मानतो नथी. समजाणुं कांई...? शुं कह्युं? अहा! देवाधिदेव त्रणलोकना नाथ सर्वज्ञ परमात्मा एम फरमावे छे के-‘मारी (-भगवाननी) भक्ति वडे पोतानुं कल्याण थाय छे एम जे जीव माने छे ते अज्ञानी छे, केमके हुं (-भगवान) तो परद्रव्य छुं अने परद्रव्यना लक्षे तो राग ज थाय छे.’ भक्तिना रागथी मुक्ति माने एणे रागथी भिन्न आत्माने मान्यो ज नथी अने तेथी ते अज्ञानी छे. आवी वात छे. अरे भाई! रागथी भिन्न शुद्ध चैतन्यमय स्वद्रव्यनो आश्रय ले त्यारे रागरहित दशा थाय छे अने त्यारे मुक्तिमार्गनी पहेली सीडी एवुं सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे. आवो मार्ग बहु आकरो, पण आ ज मार्ग छे भाई! अहीं तो अति स्पष्ट कहे छे के-श्रुतकेवळी जेवो हो अर्थात् सर्व आगम जाणतो होय छतां पण रागनो जे अंश छे-दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिनो जे विकल्प छे-ते मारो छे एम जे माने छे तेने रागनी ज हयाती छे, तेने शुद्ध चैतन्यनी हयातीनी खबर ज नथी.

परंतु रागने कोई पोतानो न माने तो? अहा! रागने पोतानो न माने तो ते राग करे ज केम? ए तो एनो जाणनार ज रहे. ए तो वात अहीं चाले छे के ज्ञानीने भक्ति आदिनो राग आवे छे, होय छे पण तेनो ते जाणनार ज रहे छे. राग मारुं कर्तव्य छे वा एनाथी मने लाभ छे एम ज्ञानी मानतो नथी; ज्यारे अज्ञानी रागथी लाभ (धर्म) थवानुं माने छे अने तेथी ते रागनो कर्ता थाय छे.

अहाहा...! आत्मा शुद्ध चैतन्यज्योतिस्वरूप भगवान छे. श्रीमद् राजचंद्रकृत आत्मसिद्धिमां आवे छे ने के-

“शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयंज्योति सुखधाम
बीजुं कहीए केटलुं कर विचार तो पाम.”