Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2026 of 4199

 

समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ ११३

शुद्ध कहेतां परम पवित्र, बुद्ध एटले एकलो ज्ञाननो पिंड अने चैतन्यघन कहीने असंख्य प्रदेश दर्शाव्या छे. अहा! भगवान सर्वज्ञदेव सिवाय असंख्य प्रदेशी जीव कोईए जोयो नथी अने कह्यो नथी. भाई! आ वस्तु जे आत्मा छे ते चैतन्यमय असंख्य प्रदेशनो अनंत गुणनो पिंड छे. अहो! क्षेत्रथी असंख्यप्रदेशी छे अने भावथी अनंत गुणनो पिंड एवो चैतन्यघन प्रभु आत्मा छे. स्वयंज्योति एटले कोईथी नहि करायेलो एवो आत्मा स्वयंसिद्ध छे; ईश्वर के बीजो कोई तेनो कर्ता छे एम नथी. वळी ते अतीन्द्रिय आनंदनुं स्थान एवो सुखधाम छे. अहो! आवो आत्मा केम पमाय! तो कहे छे-भक्ति आदि रागनी क्रियाथी ते न पमाय, केमके रागमां ज्ञान कयां छे? ए तो ज्ञानानंदस्वरूपमां एकाग्रता करी तेनुं स्वसंवेदनज्ञान करीने पमाय छे. कह्युं ने के-‘कर विचार तो पाम.’ विचार कहेतां तेनुं ज्ञान (-स्वसंवेदनज्ञान) करवाथी ते पमाय छे.

त्यारे कोई कहे छे-शुं आवो मार्ग? आमां तो व्यवहारनो बधो लोप थई जाय छे. बापु! व्यवहार व्यवहारना स्थानमां हो भले, पण व्यवहारनां प्रेम अने रुचि करवाथी तो मिथ्यात्व थाय छे. ए ज अहीं कहे छे के श्रुतकेवळी जेवो हो तोपण जो एने व्यवहारनां प्रेम अने रुचि छे तो ते सम्यग्द्रष्टि नथी, अज्ञानी छे, केमके व्यवहारनी रुचिनी आडमां तेने आखो भगवान आत्मा भळातो नथी. व्यवहार होय छे एनी कोण ना पाडे छे? भावलिंगी साचा संतो-मुनिवरो जेमने स्वात्मजनित प्रचुर अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन होय छे तेमने पंचमहाव्रतादि व्यवहार रत्नत्रयनो राग होय छे, पण तेने तेओ भलो के कर्तव्य मानता नथी. वास्तवमां तेमने व्यवहारना विकल्पमां हेयबुद्धि होय छे.

अहीं कह्युं ने के रागादि भावो अज्ञानमय छे; एटले के पंचमहाव्रतादिना जे विकल्प छे तेमां शुद्ध चैतन्यनो कण नथी, तेमां चैतन्यनी गंध पण नथी, केमके ए तो जडना परिणाम छे. आवी चोकखी वात छे; जेने मानवुं होय ते माने. आवी वात संप्रदायमां करी होय तो ‘दूर करी दो एने’-एम कहे. बापु! संप्रदायथी तो दूर ज छीए ने! अहीं तो जंगल छे बापा! प्रभु! एकवार तारी मोटपनां गीत तो सांभळ. नाथ! तुं एकला चिदानंदरसथी भरेलो भगवान छो. अहा! तुं रागना कणमां जाय (अर्पाई जाय) ते तने कलंक छे प्रभु! रागनो कण-अंशमात्र पण राग जेने (पोतापणे) हयात छे ते श्रुतकेवळी जेवो होय तोपण मिथ्याद्रष्टि छे एम अहीं कहे छे. अहा! शास्त्रनां पानानां पानां पाणीना पूरनी जेम मोढे बोली जतो होय तोपण एथी शुं? ए कांई साचुं ज्ञान नथी.

अहो! देवाधिदेव सर्वज्ञ परमात्माए जे फरमाव्युं ते अहीं संतो तेमना आडतिया थईने जगत समक्ष जाहेर करे छे के-भगवानना घरनो आ माल छे; तने