Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ गोठे तो ले. जुओ, मेरु पर्वत उपर सौधर्म देवलोक छे. तेमां ३२ लाख विमान छे. एक एक विमानमां असंख्य देव छे. तेनो स्वामी पहेलो इन्द्र-शक्रेन्द्र छे जे एकावतारी छे, अर्थात् त्यांथी नीकळीने ते मोक्ष जनार छे. ते सौधर्म-इन्द्र गलुडियानी जेम अति विनम्र थई जे भगवाननी वाणी सांभळे छे. ते आ वात छे. अहो! गणधरो, मुनिवरो अने इन्द्रो धर्मसभामां जे वाणी सांभळे छे ते अहीं भगवान कुंदकुंदाचार्य लई आव्या छे. भाई! जेनां परम भाग्य होय तेना काने आ वाणी पडे छे. कहे छे-

भगवान! तुं कोण छो? तुं केवो अने केवडो छो तेनो तने विचार-विवेक नथी. ‘अमूल्य तत्त्वविचार’मां श्रीमदे कह्युं छे ने के-

“हुं कोण छुं? कयांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारुं खरुं?
कोना संबंधे वळगणा छे? राखुं के ए परिहरुं?
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो कर्या;
तो सर्व आत्मिक ज्ञाननां सिद्धांततत्त्व अनुभव्यां.”

जोयुं? पोते कोण छे एनो शांतभावे विवेकपूर्वक विचार करे तेने आत्मज्ञान अने आत्मानुभव थाय एम कहे छे. १६ वर्षनी उंमरे आ श्रीमदे लख्युं छे. पण ए तो देहनी उंमर छे ने? उंमर साथे आत्माने शुं संबंध छे? आत्मा तो अंदर अनादिअनंत भगवान छे. ए कयां जन्मे-मरे छे? जन्म-मरण तो लोको देहना संयोग-वियोगने कहे छे; ए तो देहनी-माटीनी स्थिति छे, ज्यारे आत्मा तो एकली चैतन्यसत्तास्वरूप त्रिकाळी भगवान छे. आवी पोतानी शुद्ध चैतन्यसत्ताथी विपरीत जे विकल्प छे ते-चाहे तो व्रतनो हो, तपनो हो, के भक्तिनो हो-तोपण ते हुं छुं एम माननारने रागनो सद्भाव छे अने तेथी ते श्रुतकेवळी जेवो हो तोपण ज्ञानमय भावना अभावने लीधे ते आत्माने जाणतो नथी. ‘ज्ञानमय भावना अभावने लीधे’-एम कह्युं ने? मतलब के जेने रागनी रुचि छे तेने अज्ञाननी रुचि छे पण ज्ञानानंदमय प्रभु आत्मानी रुचि नथी-तेथी तेने ज्ञानमय भावनो अभाव छे, अने ज्ञानमय भावना अभावने लीधे ते ज्ञानना नूरनुं पूर एवा पोताना आत्माने जाणतो नथी. ल्यो, आवी वात छे. रागमां अर्पाई जाय तो अज्ञानी थाय छे अने ज्ञानमां अर्पाई जाय तो ज्ञानी थाय छे. आवो आकरो भगवाननो मार्ग बापा! आवी वात सर्वज्ञ परमेश्वरना शासन सिवाय बीजे कयांय नथी.

आ लापसी नथी रांधता? लापसी रांधे त्यारे जो लाकडां काचां होय तो चूला माथे तपेलुं होय ते अने अंदर लापसी होय ते देखाय नहीं, एकलो धूमाडो देखाय, धूमाडाना गोटामां तपेलुं अने अंदर लापसी न देखाय. तेम अज्ञानी जीव पुण्य अने पापना-रागना अंधाराने देखे छे पण अंदर भिन्न भगवान चिदानंदमय आनंदकंद प्रभु परमात्मा विराजी रह्यो छे तेने देखतो नथी. रागनी रुचिवाळाने