समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ ११प रागना अंधकार आडे चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा देखातो नथी. अहा! जेने लेशमात्र पण रागनी हयाती छे ते आत्माने जाणतो नथी. हवे कहे छे-
‘अने जे आत्माने नथी जाणतो ते अनात्माने पण नथी जाणतो कारण के स्वरूपे सत्ता अने पररूपे असत्ता-ए बन्ने वडे एक वस्तुनो निश्चय थाय छे.’
शुं कहे छे? के जे आत्माने नथी जाणतो ते अनात्माने एटले रागादिने पण नथी जाणतो; अर्थात् राग पण अनात्मा छे तेवुं ज्ञान तेने थतुं नथी. केम? कारण के स्वरूपे सत् ते पररूपे असत् छे. शुं कह्युं आ? सच्चिदानंदस्वरूप भगवान आत्मा स्वरूपथी सत् छे ने पररूपथी-रागथी असत् छे. जे! वस्तु पोताथी अस्तिपणे छे ते परद्रव्यथी नास्तिपणे छे. अहो! स्वद्रव्यथी सत् ने परद्रव्यथी असत् एवुं ज वस्तुनुं स्वरूप छे; अर्थात् ए बन्ने वडे ज वस्तुनो निश्चय थाय छे. आवो झीणो भगवाननो मार्ग छे. लोकोने बिचाराओने रळवुं-कमावुं, बैरां-छोकरां साचववां अने विषयभोग भोगववा इत्यादि पापनी मजुरी आडे नवराश मळे नहि तो आनो निर्णय तो कयारे करे? खरे! आवा मनुष्यदेहमां पण वीतरागना-परमात्माना मार्गनो निर्णय करता नथी ते कयां जशे? (एकेन्द्रियादिमां-चारगतिमां कयांय खोवाई जशे).
कहे छे-जेने रागादिथी भिन्न निज चैतन्यस्वरूपनुं ज्ञान नथी तेने रागादि अनात्मानुं पण ज्ञान होतुं नथी; कारण के आत्मा स्वरूपथी-चैतन्यस्वरूपथी सत्ता छे अने पररूपथी-रागथी असत्ता छे. वस्तु स्वरूपे सत्ता अने पररूपे असत्ता छे; छे अंदर? भाई! पोताना स्वरूपथी आत्मा छे अने पररूपथी ते असत्ता छे. आ पंचपरमेष्ठी जगतमां छे तेनाथी पण आ आत्मा असत् छे. तेवी रीते जे पंच परमेष्ठी छे ते पोताथी सत् छे अने परथी असत् छे, आ आत्माथी असत् छे. माटे जेने पोताना सत्नुं यथार्थ ज्ञान नथी तेने सत्थी विरुद्ध रागनुं पण यथार्थ ज्ञान नथी. निश्चय निज परमात्मद्रव्यनुं ज्ञान नथी तेने व्यवहारनुं पण यथार्थ ज्ञान नथी.
प्रश्नः– पण व्यवहार करतां करतां निश्चय थाय ने? उत्तरः– भाई! एम नथी; अहीं तो कहे छे-जेने स्वरूपनुं ज्ञान नथी तेने व्यवहारनुं पण साचुं ज्ञान नथी केमके स्वसत्तानुं ज्ञान नथी तेने परनी पोतामां असत्ता छे एनुं पण ज्ञान नथी. सूक्ष्म वात छे प्रभु! लोको तो बहारथी बधुं मानी बेसे छे. अंदर आनंदस्वरूप भगवान आत्माना अतीन्द्रिय आनंदना अनुभव अने ज्ञान विना जो कोई ‘राग मारो छे’ एवुं माने छे तो ते स्वसत्ताने जाणतो नथी अने तेथी परसत्ताने-रागने पण यथार्थ जाणतो नथी. निर्विकल्प निजसत्ताने ओळख्या विना दया, दान, व्रत इत्यादि विकल्पने ते यथार्थ केवी रीते जाणे? भाई! आ तो