Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ लोजीकथी-न्यायथी वात छे. भगवाननो मार्ग न्यायनो छे, हठनो नहि. जेवी वस्तुनी स्थिति छे ते तरफ ज्ञानने दोरी जवुं तेनुं नाम न्याय छे. समजाणुं कांई...?

भाई! जे स्वरूपे सत्ता छे ते पररूपे असत्ता छे. आत्मा पोताना स्वरूपे सत्ता छे ते पंचपरमेष्ठी तथा ते तरफना रागथी असत्ता छे. ‘स्वरूपे सत्ता’-एम छे ने? मतलब के पोताना ज्ञानानंदस्वरूपथी सत्ता छे अने पररूपथी-पंचपरमेष्ठी, देह के रागथी असत्ता छे. जेम स्वरूपथी सत्ता छे तेम पररूपथी सत्ता होय तो स्व अने पर बन्ने एक थई जाय, एकमेकमां भळी जाय. आत्मा जेम ज्ञानथी सत् छे तेम परथी-रागथी पण सत् होय तो ज्ञान अने राग एक थई जाय, ज्ञान अने पर एक थई जाय. पण एम छे नहि, बापु! आ कोई पंडिताईनी चीज नथी, आ तो अंतरअनुभवनी वात छे. मूळ गाथामां दोहीने अमृतचंद्राचार्ये आ अर्थ काढयो छे.

कहे छे-‘ए बन्ने वडे...’ -कया बे? के ज्ञानानंदमय भगवान आत्मा पोताथी छे ने रागादि परद्रव्यथी नथी-एम ते बन्ने वडे एक वस्तुनो निश्चय थाय छे. अहाहा...! हुं मारामां छुं अने पर रागादि मारामां नथी एम बे (अस्ति-नास्ति) वडे आत्मानो- पोतानो यथार्थ निश्चय थाय छे. आ रीते जेने पोताना स्वरूपनो यथार्थ निश्चय थयो तेने दया, दान, व्रतादिना विकल्प पर अनात्मा छे, आत्मभूत नथी एवो अनात्मानो भेगो निश्चय थई ज जाय छे. आम बे वडे एकनो (आत्मानो) निश्चय थाय छे अने एकनो (आत्मानो) निश्चय थतां बेनो (आत्मा-अनात्मानो) निश्चय साथे थई ज जाय छे. आवुं झीणुं अटपटुं छे. भाई! आ तो वीतराग परमेश्वरनी ॐध्वनिमां आवेली वात छे. आवे छे ने के-

“ॐकार धुनि सुनि अर्थ गणधर विचारै,
रची आगम उपदेश भविक जीव संशय निवारै.”

हाल परमात्मा (सीमंधरस्वामी) महाविदेहमां विराजे छे. तेमने होठ के कंठ कंप्या विना आखा शरीरमांथी ॐध्वनि-दिव्य वाणी छूटे छे. ते ॐकारध्वनि सांभळी ‘अर्थ गणधर विचारै’ अर्थात् गणधरदेव तेनो विचार अर्थात् ज्ञान करे छे. अने आगम- उपदेशनी रचना करी ते द्वारा भव्य जीवोना संशयने मटाडी दे छे, मिथ्यात्वनो नाश करे छे. अहा! भव्य जीवो आगम-उपदेशने जाणी मोहनो नाश करी आत्मानो अनुभव करे छे. भाई! ए ॐध्वनिमां आवेली आ वात छे.

कहे छे-जे आत्माने जाणे छे ते अनात्माने-रागने पण जाणे छे. वळी जेने अनात्मा-रागनो यथार्थ निश्चय थयो छे तेने आत्मा-अनात्मा बन्नेनो निश्चय थवो जोईए केमके रागने जे जाणे ते रागरहित हुं आत्मा छुं एम जाणे छे. अहाहा...! रागने जाणे तो ‘मारामां राग नथी’-तेम पोताना आत्माने पण जाणे छे. भाई!