Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ ११७ स्वस्वरूपनो-आत्मानो निश्चय थया विना एकला रागपणुं कांई नथी अर्थात् मिथ्या छे. कह्युं ने के जे आत्माने नथी जाणतो ते अनात्माने पण नथी जाणतो. जे आत्माने जाणे छे ते अनात्माने पण जाणे छे अर्थात् तेने व्यवहारनुं साचुं ज्ञान होय छे. आमां व्यवहारथी मने लाभ थाय वा निश्चय प्रगटे ए वात कयां रही? (न रही); केमके व्यवहारनुं साचुं ज्ञान पण जे आत्माने जाणे तेने ज थाय छे. समजाणुं कांई...?

प्रश्नः– श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे (समयसारनी) १२ मी गाथामां तो एम कह्युं छे के जे व्यवहारमां पडया छे तेमने व्यवहारनो उपदेश छे; एम के तेमने व्यवहार ज करवानुं कह्युं छे. नीचेनी भूमिकाए तो व्यवहार ज होय छे ने ते धर्म छे. चोथे, पांचमे अने छट्ठे गुणस्थाने तो व्यवहार ज करवो जोईए.

समाधानः– भाई! तुं शुं कहे छे आ? जेने निज स्वरूपनां द्रष्टि अने अनुभव सहित पोताना भूतार्थ स्वभावना आश्रये सम्यक्त्व थयुं छे तेनी पर्यायमां कंईक अशुद्धता पण छे. प्रगट शुद्धता अने बाकी जे अल्प अशुद्धता ते बन्नेने जाणवुं ते व्यवहार छे. व्यवहार करवो के व्यवहार करवाथी लाभ थाय ए प्रश्न ज कयां छे त्यां? अरे! लोको शास्त्रना अर्थ करवामां भूल करे छे! शुं थाय? अपरमे ट्ठिदा भावे–एटले के जे अपरम भावमां स्थित छे तेने व्यवहारनो उपदेश छे-हवे आमां व्यवहार करवो एवो अर्थ कयां छे? एवो अर्थ छे ज नहि. टीकामां तेनो अर्थ स्पष्ट कर्यो छे के-‘व्यवहारनयो... परिज्ञायमानस्तदात्वे प्रयोजनवान्’ व्यवहार नय ते काळे जाणेलो प्रयोजनवान छे. एटले के ते काळे व्यवहार छे एम जाणेलो प्रयोजनवान छे. वास्तवमां तो ते पोतानी पर्यायने जाणे छे तेमां ते जणाई जाय छे. आवी वात छे.

भगवान केवळी लोकालोकने जाणे छे एम आवे छे ने? हा, पण ए तो असद्भूत व्यवहारनय छे. खरेखर तो भगवान जेमां लोकालोक प्रकाशे छे एवी पोतानी पर्यायने ज जाणे छे. तेम ज्ञानी रागने जाणे छे एम उपचारथी-व्यवहारथी कथन छे. राग करवो जोईए के एनाथी लाभ थाय छे एवी त्यां (गाथा १२ मां) वात ज कयां छे? (नथी). तदात्वे–एटले ते काळे जेटली शुद्धता अने रागनी अशुद्धता प्रगट छे तेने जाणवुं प्रयोजनवान छे; बस आ वात छे. बीजे बीजे समये जे शुद्धिनी वृद्धि थई अने क्रमशः अशुद्धिनी हानि थई तेने ते ते समये जाणेलां प्रयोजनवान छे आम अर्थ छे, पोतानी द्रष्टिथी कोई ऊंधा अर्थ करे तो शुं थाय? अरे भगवान! तुं पण भगवान छे हों; पर्यायमां भूल छे तेथी अर्थ न बेसे त्यां शुं करीए? कह्युं छे ने के-