१२० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
भगवान! नवमी ग्रैवेयकना भव तें अनंतवार कर्या एम भगवानना शास्त्रमां कहे छे. ते नवमी ग्रैवेयक कोण जाय? एक तो आत्मज्ञानी जाय अने बीजा मिथ्याद्रष्टि पण जाय छे. जेने पांच महाव्रतनो, पांच समिति, त्रण गुप्तिनो व्यवहार चोख्खो होय एवा द्रव्यलिंगी मुनि पण नवमी ग्रैवेयक जता होय छे. पण ते रागनी क्रियाथी पोतानी शुद्ध चैतन्यचमत्कार वस्तु भिन्न छे एवी द्रष्टि करी नहि अने तेथी भवभ्रमण अर्थात् चारगतिनी रझळपट्टी मटी नहि. ल्यो, हवे राग कोने कहेवो एनी खबर न मळे अने मंडी पडे व्रत ने तप करवा पण एथी शुं वळे? एथी संसार फळे, बस. झीणी वात छे भगवान!
अहाहा...! कहे छे-भगवान! तुं कोण छो? के सर्वज्ञस्वभावी आत्मा छो. सर्वज्ञस्वभाव तारुं स्वपद छे. हवे अल्पज्ञता पण ज्यां तारामां नथी त्यां वळी राग कय ांथी आव्यो? पर्यायमां जे शुभाशुभ रागनी वृत्ति ऊठे ते विकार छे, विभाव छे. अरे! विभावने जे पोतानो माने छे ते अपदने स्वपद माने छे. भाई! आ व्रतादिना पुण्यपरिणाम अपद छे ते जीवनुं स्वपद नथी.
अहा! आनंदनो कंद प्रभु आत्मा छे, जेम सक्करकंद छे तेमां जे उपरनी लाल छाल छे ते सक्करकंद नथी, पण अंदर साकरनो कंद-मीठाशनो पिंड जे छे ते सक्करकंद छे. छाल विनानो मीठाशनो पिंड छे ते सक्करकंद छे. तेम शुभाशुभ रागनी जे वृत्तिओ उठे एनाथी रहित अंदर अतीन्द्रिय आनंदनो जे कंद छे ते आत्मा छे. आवा आनंदकंदस्वरूप प्रभु आत्मामां (पर्यायमां) जे रागनो विकल्प उठे ते मारो छे अने एनाथी मने लाभ छे एम मानवुं ते मिथ्यात्व छे. आवा मिथ्यात्व सहितना रागने अहीं राग गण्यो छे.
आवी वात छे. पण कोने पडी छे? मरीने कयां जशुं अने शुं थशे ए विचार ज कयां छे? एम ने एम बधुं कर्ये राखो; ज्यां जवाना होईशुं त्यां जशुं. आवुं अज्ञान! अरे बापु! तुं अनंत अनंत ज्ञान, आनंद अने शांतिनो पिंड छो. तेनी द्रष्टि छोडीने क्रियाकांडनो राग मारी चीज छे अने एनाथी मने लाभ छे एम माने छे पण ए तो मिथ्यात्व छे. ए मिथ्यात्वना फळमां तारे अनंतकाळ नरक-निगोदमां काढवो पडशे. बापु! ए आकरां दुःख तने सह्यां नहि जाय.
अरेरे! एणे कदी पोतानी दया पाळी नहि! पोतानी दया पाळी नहि एटले? एटले के पोते अनंत ज्ञान ने अनंतदर्शननो पिंड प्रभु छे एवा पोताना जीवनना जीवतरनी हयाती छे ते एणे कदी मानी नहि, जाणी नहि अने रागनी क्रियावाळो हुं छुं एम ज सदा मान्युं छे. आवी मिथ्या मान्यता वडे एणे पोताने संसारमां-दुःखना समुद्रमां डूबाडी राख्यो छे. आम एणे पोतानी दया तो करी नहि अने परनी दया