समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १२१ करवाना भाव कर्ये कर्या छे. पण भाई! परनी दया तो कोई पाळी शकतुं नथी. परनुं आत्मा शुं करी शके? स्वद्रव्य, परद्रव्यनुं शुं करे? कांई ज नहि. भाई! परनी दया पाळवानो भाव ते राग छे, हिंसा छे अने हुं परनी दया पाळी शकुं छुं एवी मान्यता मिथ्यात्व छे, महाहिंसा छे. अहीं आवा मिथ्यात्वसहितना रागने राग गण्यो छे. समजाणुं कांई...?
७२ मी गाथामां आव्युं ने के-पुण्य ने पापना भाव छे ते अशुचि छे, जड छे अने दुःखरूप छे. आ त्रण बोल त्यां लीधा छे. अने भगवान आत्मा अत्यंत शुचि, विज्ञानघनस्वभावी होवाथी शुद्ध चैतन्यमय अने दुःखनुं अकारण एवुं आनंदधाम प्रभु छे. त्यां ७२ मी गाथामां आत्माने ‘भगवान’ कहीने बोलाव्यो छे. ‘भगवान’ एटले आ आत्मा हों, जे भगवान (अरिहंत, सिद्ध) थई गया एनी वात नथी. आ तो आत्मा पोते ‘भग’ नाम अनंत ज्ञान ने आनंदनी लक्ष्मी अने ‘वान’ नाम वाळो-अर्थात् आत्मा अनंत-बेहद ज्ञान अने आनंदनी स्वरूपलक्ष्मीथी भरेलो भगवान छे. तेने पामर मानवो वा पुण्य-पापना राग जेवडो मानवो ते मिथ्यात्वभाव छे. भाई! पंचमहाव्रत, पांचसमिति, त्रणगुप्ति इत्यादिना जे विकल्प छे ते अशुचि, अचेतन अने दुःखरूप छे; ज्यारे पोतानो आत्मा परम पवित्र आनंदनुं धाम चैतन्यमूर्ति भगवान छे. आवुं जेने अंतरमां भेदज्ञान नथी ते रागना भावने पोतानो माने छे. अहा! जेने पोतानी ज्ञानानंदमय चैतन्यसत्तानो अंतरमां स्वीकार नथी ते, जे पोतामां नथी एवा शुभाशुभ विकल्पने पोतापणे स्वीकारे छे. भाई! आ बधा शेठिया-करोडपति ने अबजपति-अमे लक्ष्मीपति (धूळपति) छीए एम माननारा बधा मूढ मिथ्याद्रष्टि छे, केमके तेओ अजीवने जीव माने छे. अहीं तो एथीय विशेष रागना अंशने पण जे पोतानो माने ते रागी मिथ्याद्रष्टि छे अने तेना रागने अहीं राग गणवामां आव्यो छे. मिथ्यात्व विना चारित्रमोहना उदयना रागने अहीं गणवामां आव्यो नथी.
अहा! शुद्ध चैतन्यमूर्ति आनंदकंद प्रभु आत्मानो जेने स्वानुभवमां स्वाद आव्यो छे ते सम्यग्द्रष्टि छे. पण अज्ञानीने सम्यग्दर्शन विना रागनो स्वाद आवे छे अने ते रागना स्वादने लीधे विषयना स्वादथी नवांकर्म बांधे छे. परंतु जेणे रागना स्वादनी रुचि छोडीने चिदानंदघनस्वरूप निज परमात्मद्रव्यमां अंतर्द्रष्टि करी छे तेने आत्माना अनाकुळ अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे छे. तेने चारित्रमोहना उदयवश किंचित् राग थाय छे पण ते रागनी गणतरी गणवामां आवी नथी. अनंतानुबंधी सिवायनो तेने राग होय छे पण ते गणवामां आव्यो नथी. केम? केमके मुख्य पाप तो मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधी ज छे.