१२२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
कहे छे-‘मिथ्यात्व विना चारित्रमोहना उदयनो राग न लेवो; कारण के अविरत- सम्यग्द्रष्टि वगेरेने चारित्रमोहना उदयसंबंधी राग छे ते ज्ञानसहित छे; ते रागने सम्यग्द्रष्टि कर्मोदयथी थयेलो रोग जाणे छे अने तेने मटाडवा ज इच्छे छे; ते राग प्रत्ये तेने राग नथी.’
शुं कहे छे? के चोथे आदि गुणस्थाने सम्यग्द्रष्टिने जे चारित्रमोहना उदयसंबंधी राग छे ते ज्ञान सहित छे. एटले शुं? के ज्ञानीने ते राग पोताना ज्ञानमां भिन्न मेलपणे भासे छे. अहाहा...! हुं तो पूर्णानंदनो नाथ भगवान छुं अने आ राग छे ते मेल छे, पर छे-एम समकितीने राग पोतानाथी भिन्नपणे भासे छे. हुं आत्मा आनंदमय छुं अने आ राग पर छे एम रागनुं तेने यथार्थ ज्ञान होय छे. आवुं बधुं छे, पण लोकोने बिचाराओने कुटुंब-बायडी-छोकरां ने समाजनी संभाळ-सेवा करवा आडे नवराश ज कयां छे?
हा, पण कुटुंबनी अने समाजनी तो सेवा करवी जोईए ने? अरे भाई! धूळेय सेवा करतो नथी, सांभळने. हुं परनी सेवा करुं छुं एम माननारा तो बधा मूढ मिथ्याद्रष्टि छे. एक द्रव्य बीजा द्रव्यनी सेवा त्रणकाळमां करी शके नहि. सर्व द्रव्यो ज्यां स्वतंत्र परिणमे त्यां कोण कोनुं काम करे? शुं आत्मा परनुं कार्य करे? परनो कर्ता आत्मा कदीय छे नहि.
अहीं तो एम कहे छे के सम्यग्द्रष्टिने जे राग छे ते ज्ञान सहित छे. तीर्थंकर चक्रवर्तीने भले हजी ९६ हजार स्त्री होय, ९६ करोड पायदळ होय, ने ९६ करोड गाम होय, छतां ते संबंधीनो जे राग छे ते ज्ञान सहित छे अर्थात् ते एने पोतानाथी भिन्न चीज छे एम जाणे छे. रागमां कयांय तेने स्वामित्व नथी. बहु झीणी वात बापु! जन्म- मरण रहित थवानी वात बहु झीणी छे प्रभु!
अरे! एणे आ (-समकित) सिवाय बाकी तो बधुं अनंतवार कर्युं छे. पाप पण एवां कर्यां छे के अनंतवार नरकादिमां गयो अने पुण्य पण एवां कर्यां छे के अनंतवार ते स्वर्गमां गयो. अहा! नरक करतां स्वर्गना असंख्यगुणा अनंता भव एणे कर्या छे. शुं कह्युं ए? के जेटली (अनंत) वार नरकमां गयो एनाथी असंख्यगुणा अनंता भव स्वर्गना कर्या छे. एक नरकना भव सामे असंख्य स्वर्गना भव-एम नरकना भव करतां असंख्यगुणा अनंता भव एणे स्वर्गना कर्या छे एम भगवाननी वाणीमां आव्युं छे. मतलब के स्वर्गमां अनंतवार जाय एवा क्रियाकांड तो घणाय कर्या छे. अरे! शुक्ल लेश्याना परिणाम, जे हमणां तो छेय नहि ते करी करीने अनंत वार ग्रीवक गयो पण पाछो त्यांथी नीचे पटकायो. आवे छे ने के-