Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १२३

अरे! ए भगवान केवळीना समोसरणमां अनंतवार गयो छे. भगवान अरिहंत परमात्मा त्रणलोकना नाथ महाविदेहमां सदाय विद्यमान होय छे. त्यां महाविदेहमां ए अनंतवार जन्म्यो छे अने भगवानना समोसरणमां अनंतवार गयो छे. पण ‘केवळी आगळ रही गयो कोरो’ एवो घाट एनो थयो छे, केमके भगवाननी वाणीनो भाव तेणे अंदर अडकवा दीधो नथी. रागथी पार शुद्ध चैतन्यमय पोतानी चीज अंदर भगवानस्वरूपे छे एवुं भगवाने कह्युं पण एणे ते रुचिमां लीधुं ज नथी. तेथी ग्रीवक जई जईने पण ते अनंत वार नीचे नरक-तिर्यंचमां रखडी मर्यो छे.

भाई! तुं भगवानस्वरूपे छो हों. पर्यायद्रष्टि छोडीने अंदर स्वभावथी जुए तो बधाय आत्मा सच्चिदानंदस्वरूप भगवान छे. अहा! आवा पोताना स्वरूपमां जेणे अंतर्द्रष्टि करी ते सम्यग्द्रष्टि छे; अने ते सम्यग्द्रष्टि रागने कर्मोदयथी थयेलो रोग जाणे छे. सम्यग्द्रष्टिने व्रत, नियम आदि संबंधी अने किंचित् विषय संबंधी पण राग आवे छे, पण तेने ते रोग समान जाणे छे, झेर समान ज जाणे छे अने तेने मटाडवा ज इच्छे छे.

अहाहा...! जेने आत्माना अनाकुळ आनंदनो स्वाद आव्यो छे ते समकितीने रागनो स्वाद विरस दुःखमय लागे छे अने तेथी ते सर्व रागने मटाडवा ज इच्छे छे. जेम काळो नाग घरमां आवे तो तेने कोई बहार मूकी आवे के घरमां राखे? तेम समकिती जे राग आवे छे तेने काळा नाग जेवो जाणी दूर करवा ज इच्छे छे, राखवा मागतो नथी. अहा! व्रतादिना रागमां तेने होंश नथी, हरख नथी.

कोईने वळी थाय के आ ते केवो धर्म? शुं आवो धर्म हशे? तेने कहीए छीए-भगवान! तें धर्म कदी सांभळ्‌यो नथी. अंदर (स्वरूप) शुं छे तेनी तने खबर नथी. अहाहा...! एक समयमां प्रभु! तारी शक्तिनो कोई पार नथी एवुं महिमावंत तारुं स्वरूप छे. अहाहा...! त्रणकाळ-त्रणलोकना द्रव्य-गुण-पर्यायने एक समयमां देखे-जाणे एवी अचिंत्य चैतन्यशक्ति अंदर तारामां पडी छे. आवी पोतानी शक्तिनो महिमा लावी जे अंतर-एकाग्र थयो तेने स्वरूपनो स्वाद आव्यो. ते स्वरूपना स्वादिया समकितीने जे व्रतादिनो राग आवे तेनो स्वाद झेर जेवो लागे छे एम अहीं कहे छे. गजब वात छे प्रभु! अज्ञानीने शुभराग आवे तेमां ते हरखाई जाय, ज्यारे ज्ञानी तेने रोग-समान जाणे छे. ज्ञानीने शुद्ध चैतन्यनो आश्रय छे ने? तेथी ते रागथी विरक्त छे अने जे राग थाय तेने रोग समान जाणी मटाडवा इच्छे छे. बहु झीणी वात छे भाई! चैतन्यनुं शरण पाम्या विना दुनिया कयांय रझळती-रखडती दुःखमां डूबी जशे; पत्तोय नहि लागे.