१२४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
खूब गंभीर वात छे भाई! आ गाथा पछी कळश आवशे. तेनी व्याख्या करतां ‘अध्यात्मतरंगिणीमां’ ‘पद’ शब्दनी व्याख्या करी छे. त्यां कह्युं छे के-जे चैतन्य पद छे ते जीवनुं पद कहेतां जीवनुं रक्षण छे, जीवनुं लक्षण छे, ने जीवनुं स्थान छे. आ सिवाय रागादि अपद छे, अरक्षण छे, अलक्षण छे, अस्थान छे. भाई! आ मोटा मोटा महेल- मकान तो अपद छे ज; अहीं तो दया, दान, व्रत, तप, भक्ति आदिनो जे विकल्प ऊठे छे ते अपद छे, अरक्षण छे, अलक्षण छे, अस्थान छे एम कहे छे. ल्यो, आवुं कयांय सांभळ्युं’तुं? (सांभळ्युं होय तो आ दशा केम रहे?)
कोई वळी गौरव करे के-अमारे आवा मकान ने आवा महेल! त्यारे कोई वळी कहे-अमे आवां दान कर्यां ने तप कर्यां इत्यादि.
एमां धूळेय तारुं नथी बापु! सांभळने; मकानेय तारुं नथी अने दानादि रागेय तारो नथी. ए तो बधां अपद छे, अशरण छे, अस्थान छे. भगवान! तुं एमां रोकाईने अपदमां रोकाई गयो छो. तारुं पद तो अंदर चैतन्यपद छे तेमां तुं कदी आव्यो ज नथी. भगवान! तुं निजघरमां आव्यो ज नथी. भजनमां आवे छे ने के-
हुं पुण्यवाळो, ने हुं दयावाळो, ने हुं व्रतवाळो, धनवाळो, स्त्रीवाळो, छोकरावाळो, मकानवाळो, आबरुवाळो-अहाहाहा...! केटला ‘वाळा’ प्रभु! तारे? एक ‘वाळो’ जो नीकळे तो राड नाखे छे त्यां भगवान! तने आ केटला ‘वाळा’ चोंटया?
हा, पण ए ‘वाळो’ तो दुःखदायक छे, शरीरने पीडा आपे छे पण आ ‘वाळा’ कयां दुःखदायक छे?
उत्तरः– भाई! ए ‘वाळो’ एक जन्ममां ज पीडाकारी छे पण आ ‘वाळा’ तो तने जन्म-जन्म मारी नाखे छे; आ ‘वाळा’ तो अनेक जन्म-मरणनां दुःखो आपनारा छे. पण शुं थाय? अज्ञानीने एनुं भान के दि’ छे?
ज्यारे ज्ञानी समकितीने जे राग आवे छे तेने ते रोग जाणे छे. अरे! व्रतनो जे विकल्प आवे तेने समकिती रोग जाणे छे. गजब वात छे भाई! वीतरागनो मार्ग कोई अलौकिक छे प्रभु! बिचारा लोकोने ते सांभळवा मळ्यो नथी! अहा! ज्ञानीने राग प्रत्ये राग नथी. छे अंदर? ज्यांसुधी पूर्ण वीतरागता नथी-परमात्मदशा नथी त्यां सुधी ज्ञानीने विकल्प उठे छे, व्यवहारनो राग आवे छे परंतु-
१. तेने ते रोग जाणे छे एक वात,