समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १२प
२. तेने ते मटाडवा इच्छे छे-बीजी वात, अने ३. तेने रागनो राग नथी. ल्यो, आ वात छे. हवे कहे छे- ‘वळी सम्यग्द्रष्टिने रागनो लेशमात्र सद्भाव नथी एम कह्युं छे तेनुं कारण आ प्रमाणे छेः- सम्यग्द्रष्टिने अशुभ राग तो अत्यंत गौण छे अने जे शुभ राग थाय छे तेने ते जराय भलो समजतो नथी-तेना प्रत्ये लेशमात्र राग करतो नथी. वळी निश्चयथी तो तेने रागनुं स्वामित्व ज नथी. माटे तेने लेशमात्र राग नथी.’
शुं कहे छे? के जेने आत्मज्ञान अने आत्मदर्शन थयुं छे तेवा सम्यग्द्रष्टिने पूर्ण वीतरागदशा न थाय त्यां सुधी राग तो आवे छे, पण तेने ते जराय भलो एटले हितकारी समजतो नथी. जुओ, आ वीतरागनो मार्ग अने आ वीतरागनी आज्ञा! राग भलो छे ए वीतरागनी आज्ञा ज नथी. बापु! वीतरागनो मार्ग तो वीतरागभावथी ज ऊभो थाय छे, रागथी नहि. रागथी ऊभो थाय ए वीतरागनो मार्ग छे ज नहि. ए ज कहे छे-
अशुभ राग तो समकितीने गौण छे. अर्थात् ज्ञानीने विषयवासनानो राग क्वचित् किंचित् आवे छे पण ते गौण छे. अने तेने जे शुभ राग आवे छे तेने ते जराय भलो समजतो नथी. अहा! जेणे पोताना भगवानने-चिदानंदघन प्रभु आत्माने भलो जाण्यो अने तेनो आश्रय कर्यो ते शुभरागने हवे भलो केम जाणे? ‘जराय भलो समजतो नथी’-छे अंदर? तेना प्रत्ये लेशमात्र राग करतो नथी. अंदर वस्तु चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मानो ज्यां आदर थयो त्यां शुभाशुभ रागनो आदर रहेतो नथी. व्रत ने तप ने भक्ति इत्यादि जेम थाय छे तेम थाय छे पण समकितीने तेनो आदर नथी, तेना प्रत्ये राग नथी. निश्चयथी तो तेने रागनुं स्वामित्व ज नथी. जुओ आ धर्मात्मा! धर्मी एने कहीए जे रागनो स्वामी नथी, रागनो धणी नथी. ल्यो, पछी आ धूळनो (- पैसानो) हुं धणी ने बायडीनो हुं धणी-ए तो कयांय (दूर) रही गयुं. समजाणुं कांई...?
तो पछी आ बायडी-छोकरां मारां छे एम मानवुं शुं जूठुं छे? उत्तरः– भाई! आ बायडी मारी ने छोकरां मारां ने पैसा मारा एम मानवुं ए तो नरी मूर्खाई छे; ए तो मूढ मिथ्याद्रष्टिनी मान्यता छे. ज्यां भगवान आत्मा पोते शरीरथी पण भिन्न छे तो पछी ते बधां तारां छे एम कयांथी आव्युं? ए बधांनो तारामां अभाव छे अने तारो ए बधामां अभाव छे तो पछी कयांथी ए बधां तारां थई गयां? बापु! ए तो बधी संयोगने जाणवानी-ओळखवानी रीत छे के-आ पिता, आ पुत्र; बाकी कोण पिता? ने कोण पुत्र? बधा