Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ चैतन्यस्वरूप भगवान छे त्यां कोण कोनो पिता? ने कोण कोनो पुत्र? अज्ञानीने आ कठण पडे छे, पण शुं थाय? अहीं तो कहे छे-ज्ञानी धर्मात्मा, पोताने जे शुभराग थाय छे तेने पण स्वामीपणे मारो छे तेम मानता नथी. आवो भगवाननो मार्ग बहु सूक्ष्म छे भाई! (उपयोगने सूक्ष्म करे तो ज हाथ लागे तेम छे).

प्रश्नः– ज्ञानी व्रतादिने जराय भलां जाणतो नथी तो तेमां जे अतिचार लागे छे तेनुं ते प्रायश्चित केम ले छे?

समाधानः– भाई! ज्ञानी व्रतादिना रागने जराय भलो समजतो नथी; ए तो एम ज छे. तोपण तेने राग तो आवी ज जाय छे. कदीक व्रतमां अतिचार- अशुभ पण थई जाय छे. ते दोष छे एम जाणी तेने ते टाळे छे. आनुं नाम प्रायश्चित छे. त्यां प्रायश्चितनो जे विकल्प छे ते शुभभाव छे, ते विषकुंभ छे. समयसार, मोक्ष अधिकार (गाथा ३०६) मां दया, दान, व्रत, तप, भक्ति इत्यादि भावने विषकुंभ कह्यो छे. अहा! एकला अतीन्द्रिय अमृतनो सागर प्रभु आत्मा छे. एनाथी विरुद्धना भाव बधा झेर छे. प्रायश्चितनो जे विकल्प छे ते पण झेरनो घडो छे. भाई! विषयवासनाना परिणाम तो झेर छे ज; जे शुभभाव छे ते पण झेर ज छे. हवे आनो मर्म अज्ञानी जाणे नहि एटले शुभरागथी धर्म थवो मानी क्रियाकांड करे पण तेथी शुं वळे? भगवान! ए राग तने शरण नथी हों; शरण तो एक रागरहित नित्य ज्ञानानंदस्वभावी भगवान आत्मा ज छे. ज्ञानी पण शुद्ध चैतन्यस्वभावना आश्रये ज दोषने टाळे छे अने ते ज साचुं प्रायश्चित छे. समजाणुं कांई...?

अहीं कहे छे-ज्ञानी राग प्रत्ये लेशमात्र राग करतो नथी. वळी निश्चयथी तो तेने रागनुं स्वामित्व ज नथी. ज्ञानीने जे राग थाय छे तेनो ते धणी ज नथी. आ खाधेला मैसूबनी विष्टा नीकळे तेनुं कोई धणीपणुं राखे के आ विष्टा मारी छे? (न राखे). तेम ज्ञानीने राग झेर समान छे, विष्टा समान छे. बापा! आकरुं लागे अने लोको राडो पाडे पण शुं थाय? राड पाडो तो पाडो; भाई! वस्तु तो जेम छे तेम छे; तेमां कांई बीजुं थाय एम नथी. अहो! आ तो त्रणलोकना नाथ अरिहंत परमात्मानी वाणीनो मर्म प्रचुर आनंदनी मस्तीमां रहेनारा संतो जाहेर करे छे. कहे छे-सम्यग्द्रष्टि रागनो जरीय स्वामी नथी; आवो वीतरागनो मार्ग छे. अरे! लोकोए कल्पना करीने रागने वीतरागनो मार्ग-जैनमार्ग मान्यो छे! (ए खेदनी वात छे). अहीं तो आ स्पष्ट वात छे के निश्चयथी ज्ञानीने रागनुं स्वामित्व ज नथी; माटे तेने लेशमात्र पण राग नथी. हवे बीजी वात कहे छे-

‘जो कोई जीव रागने भलो जाणी तेना प्रत्ये लेशमात्र राग करे तो-भले ते सर्व शास्त्रो भणी चूकयो होय, मुनि होय, व्यवहारचारित्र पण पाळतो होय तोपण-