Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा २०१-२०२ ] [ १२७ एम समजवुं के तेणे पोताना आत्मानुं परमार्थस्वरूप नथी जाण्युं, कर्मोदयजनित रागने ज सारो जाण्यो छे अने तेनाथी ज पोतानो मोक्ष मान्यो छे.’

भाग्य होय तो सांभळवाय मळे एवो सरस अधिकार छे आ. कहे छे-कोई जीव भले सर्व शास्त्रो भणी चूकयो होय, भले ने तेने अगियार अंगनुं ज्ञान प्रगट थयुं होय ने करोडो श्लोको कंठस्थ होय, पण जो ते रागने भलो जाणे छे तो ते अज्ञानी छे, तेणे पोताना आत्मानुं परमार्थस्वरूप जाण्युं नथी. जुओ, एक आचारांगनां १८ हजार पद छे. एक एक पदमां प१ करोड जाजेरा श्लोक छे. आवां आवां अगियार अंग ते अनंतवार भण्यो छे. पण तेथी शुं? ए तो बधुं परलक्षी ज्ञान छे, ते कांई आत्मानुं ज्ञान नथी. भाई! रागथी भिन्न पडी अंतर-एकाग्रता वडे आत्मज्ञान प्रगट कर्या विना अगियार अंगनुं बहिर्लक्षी ज्ञान पण कांई कार्यकारी नथी. समजाणुं कांई...?

कोईने थाय के आ तो बधुं सोनगढथी काढयुं छे. पण आमां सोनगढनुं शुं छे भाई! आ गाथा २००० वर्ष उपर लखाई छे, तेनी टीका १००० वर्ष उपर थयेली छे अने आ भावार्थ १प० वर्ष पहेलानो छे. ए बधामां आ वात छे के-कोई सर्व शास्त्रो भण्यो होय, मोटो नग्न दिगंबर मुनि थयो होय अने व्यवहारचारित्र पण चुस्त अने चोख्खां पाळतो होय, पण जो ते व्यवहारचारित्रना रागने भलो जाणे छे वा तेने ए राग प्रत्ये राग छे तो ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेने निज चैतन्यस्वरूप आत्मानुं ज्ञान-श्रद्धान नथी.

शुं कह्युं? के कोई द्रव्यलिंगी पंचमहाव्रतमां कोई दोष न लागे ते रीते चुस्तपणे व्यवहारचारित्र पाळतो होय, प्राण जाय तोपण पोताना माटे बनावेला आहारनो कण पण ग्रहण न करे तोपण ते मिथ्याद्रष्टि छे. केम? केमके ते रागने भलो जाणी रागने ग्रहण करे छे.

आ बधा लोको तो भक्ति-पूजा करे अने जात्राए जाय एटले मानी ले के धर्म थई गयो. पण एमां तो धूळेय धर्म थतो नथी सांभळने. ए तो बधो शुभराग छे, पुण्यबंधननुं कारण छे; तेने भलो जाणे छे ए मिथ्यादर्शन छे. भाई! एक तत्त्वद्रष्टि - आत्मद्रष्टि विना ए बधा क्रियाकांड संसारमां-चारगतिमां रझळवाना रस्ता छे. बापु! राग छे ए तो झेर छे, ए कांई चैतन्यनुं स्वरूप नथी. छतां तेने भलो जाणे ते रागरहित चिदानंदमय निज परमात्मद्रव्यने जाणतो नथी. कह्युं ने के ते महाव्रतादि पाळे तोय आत्माने जाणतो नथी.

महाव्रतादि पाळे तोय आत्माने जाणतो नथी? हा, रागने भलो जाणे, व्यवहार करतां करतां धर्म थशे एम माने ते महाव्रतादि