Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ पाळे तोय आत्माने जाणतो नथी. केमके रागने जे भलो जाणे ते रागथी खसे केम? अने रागथी खस्या विना, एनाथी भेद कर्या विना रागरहित चैतन्यस्वरूप जणाय केम? भाई! व्रतादि छे ते राग छे. अने एनोय जेने राग छे ते रागथी खसतो नथी अने तेथी तो पोताना आत्माना परमार्थस्वरूपने जाणतो नथी. हवे वेपार-धंधो करवामां ने बायडी-छोकरां साचववामां ने विषय-भोगमां आखो दि’ एकला पापमां चाल्यो जाय एने नवराश मळे के दि’? अने तो ए आ समजे के दि’? कदाचित् नवराश लई सांभळवा जाय तो अंदर ऊंधां लाकडां खोसीने आवे के-व्रत करो, तपस्या करो एटले धर्म थई जशे. श्रीमदे ठीक ज कह्युं छे के बिचाराने कुगुरु लूंटी ले छे.

भाई! वीतरागनो मार्ग-सम्यग्दर्शननो मार्ग कोई अचिंत्य, अलौकिक छे! ए मार्ग बापु! माखण चोपडे मळे एम नथी. दान, तप इत्यादिना रागथी धर्म मनावतां कदाच लोको राजी थशे पण तारो आत्मा राजी नहि थाय भगवान! कोई दानमां पांच- पचीस लाख खर्चे वा कोई महिना-महिनाना उपवास करे तेथी धर्म थई जाय एवुं धर्मनुं स्वरूप नथी. धर्म तो वीतरागस्वरूप छे, अने ए (दानादि) तो बधो राग छे. एमांय रागनी मंदता होय तो पुण्य थाय, धर्म नहि. वळी जो ते पुण्यने भलुं जाणे तो मिथ्यात्व थाय. आवी आकरी वात बापा! जगतने पचाववी महा कठण! पण भगवान त्रणलोकना नाथनी आ ज आज्ञा छे. रागने भलो मानवो ते भगवाननी आज्ञा नथी. अहा! अंदर अकषायरसनो पिंड एवो पुण्य-पाप रहित सदा वीतरागस्वभावी भगवान विराजी रह्यो छे. तेने भलो नहि जाणतां भाई! जो तुं पुण्यने भलुं जाणे छे तो तुं पोताना आत्माने जाणतो ज नथी.

अज्ञानी जीव कर्मोदयजनित रागने ज सारो माने छे अने ते वडे ज पोतानो मोक्ष थवो माने छे. जुओ आ विपरीतता! बापु! राग छे ए तो कर्मना उदयना निमित्ते उत्पन्न थयेलो औपाधिक भाव छे; ते कांई आत्माथी उत्पन्न थयेलो स्वभावभाव नथी. धर्म तो स्वभावभाव छे. आवी वात! अहीं तो आ (वात) ४२ वर्षथी चाले छे, आ कांई नवी वात नथी. आ समयसार तो १८ मी वार प्रवचनमां चाले छे. एनी लीटीए लीटी अने शब्देशब्दनो अर्थ थई गयो छे. अहा! पण शुं थाय? जगतने तो ते ज्यां-जे संप्रदायमां-पडयुं होय त्यांथी खसवुं मुश्केल-कठण पडे छे. कदाचित् त्यांथी खसे तो रागथी खसवुं विशेष कठण पडे छे. पण भाई! धर्म तो रागरहित वीतरागतामय ज छे अने ते वीतरागनो मार्ग एक दिगंबर जैनधर्म सिवाय बीजे कयांय नथी. रागने भलो जाणी रागने आचरवो ए तो वीतरागनो मार्ग छे ज नहि. समजाणुं कांई...?

भाई! आवो मनुष्यभव मळ्‌यो एमां आ अवसरे आ न समज्यो तो कयारे